Book Title: Shraman Pratikraman
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 38
________________ श्रमण प्रतिक्रमण पञ्चसु महावतेषु प्राणातिपाताद् विरमणं मृषावादाद् वि रमणं अदत्तादानाद् विरमणं मैथुनाद विरमणं परिग्रहाद् विरमणं प्रतिक्रामामि पञ्चसु समितिष ईर्यासमितौ भाषासमितौ एषणासमिती आदानभाण्डामत्रनिक्षेपणासमिती उच्चारप्रस्रवणश्वेलसिंघाणजल्लपारिस्थापनिकीसमिती प्रतिक्रामामि षट्सु जीवनिकायेषु पृथ्वीकाये अप्काये तेजस्काये वायुकाये वनस्पतिकाये सकाये प्रतिक्रामामि षट्सु लेश्यासु कृष्णलेश्यायां नीललेश्यायां कापोतलेश्यायां तेजोलेश्यायां पद्मलेश्यायां शुक्ललेश्यायां प्रतिक्रामामि सप्तषु भयस्थानेषु अष्टसु मवस्थानेषु नवसु ब्रह्मचर्यगुप्तिषु पांच महावतों में--- प्राणातिपात-विरमण मृषावाद-विरमण अदत्तादान-विरमण मैथुन-विरमण और परिग्रह-विरमण में। प्रतिक्रमण करता हूं पांच समितियों मेंईर्या समिति भाषा समिति एषणा समिति उपकरण, पात्र आदि लेने तथा रखने की समिति मल, मूत्र, कफ, श्लेष्मा और मैल के व्युत्सर्ग की समिति में। प्रतिक्रमण करता हूं छह जीवनिकायों मेंपृथ्वीकाय अप्काय तेजस्काय वायुकाय वनस्पतिकाय और सकाय में। प्रतिक्रमण करता हूं छह लेश्याओं में-- कृष्णलेश्या नीललेश्या कापोतलेश्या तेजोलेश्या पद्मलेश्या और शुक्ललेश्या में। प्रतिक्रमण करता हूं सात प्रकार के भय-स्थानों में ।' आठ प्रकार के मद-स्थानों में । नव प्रकार की ब्रह्मचर्य-गुप्तियों में ।' Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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