Book Title: Shraman Pratikraman
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 36
________________ श्रमण प्रतिक्रमण प्रतिक्रामामि द्वयोर्बन्धनयोः रागबन्धने दोषबन्धने प्रतिक्रामामि त्रिषु दण्डेषु मनोदण्डे वाग्दण्डे कायदण्डे प्रतिक्रामामि तिसृषु गुप्तिषु मनोगुप्तौ वाग्गुप्तो कायगुप्तौ प्रतिक्रामामि त्रिषु शल्येषु मायाशल्ये निदानशल्ये मिथ्यादर्शनशल्ये प्रतिक्रामामि त्रिषु गौरवेषु ऋद्धिगौरवे रसगौरवे सातगौरवे प्रतिक्रामामि तिसृषु विराधनासु ज्ञानविराधनायां दर्शनविराधनायां चारित्रविराधनायां प्रतिकामामि चतुर्दा कषायेषु क्रोधकषाये मानकषाये मायाकषाये लोभकषाये प्रतिक्रमण करता हूं दो प्रकार के बन्धनों में - राग-बन्धन और द्वेष-बन्धन में। प्रतिक्रमण करता हूं तीन दण्डो मेंमनःदण्ड वचनदण्ड और कायदण्ड में। प्रतिक्रमण करता हूं तीन गुप्तियों मेंमनगुप्ति वचनगुप्ति और कायगुप्ति में। प्रतिक्रमण करता हूं तीन शल्यों मेंमायाशल्य निदानशल्य और मिथ्यादर्शनशल्य में। प्रतिक्रमण करता हूं तीन प्रकार के गौरव मेंऋद्धिगौरव रसगौरव और सातागौरव में। प्रतिक्रमण करता हूं तीन प्रकार की विराधनाओं मेंज्ञान की विराधना दर्शन की विराधना और चारित्र की विराधना में । प्रतिक्रमण करता हूं चार प्रकार के कषायों मेंक्रोध कषाय मान कषाय माया कषाय और लोभ कषाय में। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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