Book Title: Shraman Pratikraman
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 39
________________ ३० दशविधे श्रमणधमें एकादशसु उपासकप्रतिमासु द्वादशसु भिक्षुप्रतिमासु त्रयोदशसु क्रियास्थानेषु चतुर्दशसु भूतग्रामेषु पञ्चदशसु परमाधामिकेषु षोडशसु गाथाषोडशकेषु सप्तदशविधे असंयमे अष्टादशविधे अब्रह्मणि एकोनविंशती ज्ञाताध्ययनेषु विशतो असमाधिस्थानेषु afaat शबलेषु द्वाविंशत परीषषु त्रयोविंशतौ सूत्रकृताध्ययनेषु सप्तविंशतौ अनगारगुणेषु अष्टविंशतिविधे आचारप्रकल्पे श्रमण प्रतिक्रमण दस प्रकार के श्रमण-धर्म में । * ग्यारह प्रकार की उपासक - प्रतिमाओं (निर्धारित साधना पद्धति में | बारह प्रकार की भिक्षु - प्रतिमाओं में । ' तेरह क्रियास्थानों (कर्म - बन्ध की हेतुभूत प्रवृत्ति) में । " चौदह प्रकार के जीव- समूह में 1 पन्द्रह प्रकार के परमाधार्मिक में ।' Jain Educationa International सूत्रकृतांग के सोलह अध्ययनों में ।" सतरह प्रकार के असंयम में । " अठारह प्रकार के अब्रह्मचर्य में । ज्ञाताधर्मकथा के उन्नीस में । १३ बीस असमाधि स्थानों में । " इक्कीस शबल दोषों में । १५ चतुति देवेषु चौबीस प्रकार के देवों में । " पञ्चविंशतौ भावनासु पचीस भावनाओं में । " पविशतौ दशाकल्पव्यवहाराणा - दशाश्रुतस्कन्ध के दस मुद्देशनकालेषु बाईस परीषहों में । सूत्रकृतांग के तेवीस ( १६ + ७) अध्ययनों में । १७ देवो अध्ययनों बृहत्कल्प के छह और व्यवहार के दस (१०+६+ १० ) - इन छबीस अध्ययनों में । " अणगार के सत्ताईस गुणों में । " आचारांग के (९+१६) २५ तथा निशीथ के तीन — इस प्रकार २८ अध्ययनों में । २२ 1 maraशति पापश्रुतप्रसंगेषु त्रिशति मोहनीयस्थानेषु एकत्रशति सिद्धादिगुणेषु द्वात्रिशति योगसंग्रहेषु त्रयस्त्रशति आशातनासु टिप्पण १ से २७, देखें - प्रस्तुत अध्ययन के अन्त में, पृष्ठ ३९-५१ । उनतीस प्रकार के पापश्रुतप्रसंगों में । " मोहनीय के तीस स्थानों में । २४ सिद्धों के इकतीस आदि - गुणों में । २५ तीस योग - संग्रह में । " तेतीस आशातनाओं में । For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80