Book Title: Shraman Pratikraman
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 40
________________ श्रमण प्रतिक्रमण . अर्हतां आशातनायां अरहंतों सिद्धानां आशातनायां सिद्धों आचार्याणां आशातनायां आचार्यों उपाध्यायानां आशातनायां उपध्यायों साधूनां आशातनायां साधुओं साध्वीनां आशातनायां साध्वियों श्रावकाणां आशातनायां श्रीवकों श्राविकाणां आशातनायां श्राविकाओं देवानां आशातनायां देवों देवीनां आशातनायां देविओं इहलोकस्य आशातनायां इहलोक परलोकस्य आशातनायां परलोक केवलिप्रज्ञप्तस्य धर्मस्य आशातनायां केवलिप्रज्ञप्त धर्म संदेवमनुष्यासुरस्य लोकस्य आशातनायां देवलोक, मनुष्यलोक और असुरलोक सर्वप्राणभूतजीवसत्त्वानां आशातनायां सभी प्राण, भूत, जीव और सत्त्वों कालस्य आशातनायां काल श्रुतस्य आशातनायां श्रुत श्रुतदेवताया आशातनायां श्रुतदेवता (और) वाचनाचार्यस्य आशातनायां वाचनाचार्य की आशातना में यद् व्याविद्धं जो सूत्रपाठ को विपर्यस्त किया हो-आगे पीछे किया हो। व्यत्यामेलितं मूलपाठ में अन्य पाठ का मिश्रण किया हो हीनाक्षरं अक्षरों की न्यूनता की हो अत्यक्षरं अक्षरों की अधिकता की हो पदहीनं पदों की न्यूनता की हो विनयहीनं विराम-रहित पढ़ा हो घोषहीनं घोष-रहित पढ़ा हो योगहीनं सम्बन्ध-रहित पढ़ा हो सुष्ठ-अदत्तं ज्ञान अच्छी तरह से न दिया हो दुष्टुप्रतीच्छितं ज्ञान को अच्छी तरह से ग्रहण न किया हो अकाले कृतः स्वाध्यायः अकाल में स्वाध्याय किया हो काले न कृतः स्वाध्यायः काल में स्वाध्याय न किया हो अस्वाध्यायिके स्वाधीतं अस्वाध्यायी में स्वाध्याय किया हो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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