Book Title: Shraman Pratikraman
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 42
________________ श्रमण प्रतिक्रमण संस्कृत छाया नमः चतुर्विशतये तीर्थकरेभ्यः ऋषभादिमहावीरपर्यवसानेभ्यः इदमेव नग्रन्थं प्रवचन सत्यम् अनुत्तरं केवलं प्रतिपूर्ण नर्यात्रिक संशुद्धं शल्यकर्त्तनं सिद्धिमार्गः मुक्तिमार्गः निर्याणमार्ग निर्वाणमार्गः अवितथम अविसंधि सर्वदुःखप्रहाणमार्गः अत्र स्थिताः जीवाः सिध्यन्ति 'बुज्झंति' मुचयन्ते परिनिर्वान्ति सर्वदुःखानामंतं कुर्वन्ति तं धर्म श्रद्दधे प्रत्येमि रोचे स्पृशामि अनुपालयामि शब्दार्थ नमस्कार हो चौबीस तीर्थंकरों को ऋषभ से लेकर महावीर तक । यही निर्ग्रन्थ प्रवचन सत्य अनुत्तर अद्वितीय प्रतिपूर्ण नैर्यात्रिक-मोक्ष तक पहुंचाने वाला संशुद्ध शल्य को काटने वाला सिद्धि का मार्ग मुक्ति का मार्ग मोक्ष का मार्ग शांति का मार्ग सत्य अविच्छिन्न (और) समस्त दुःखों के क्षय का मार्ग है। इस निर्ग्रन्थ प्रवचन में स्थित जीव सिद्ध होते हैं प्रशांत होते हैं मुक्त होते हैं परिनिर्वाण को प्राप्त होते हैं। सब दुःखों का अन्त करते हैं उस (निर्ग्रन्थ) धर्म पर श्रद्धा करता हूं प्रतीति करता हूं रुचि करता हूं उसका आचरण करता हूं अनुपालन करता हूं Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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