Book Title: Shraman Pratikraman
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 23
________________ श्रमण प्रतिक्रमण तस्य मिथ्या उससे संबंधित निष्फल हो मेरा दुष्कृत। दुष्कृतम् । भावार्थ सम्यक्त्व का स्वरूप-अर्हत् मेरे देव हैं। जीवन पर्यन्त सुसाधु मेरे गुरु हैं और जिनेश्वर द्वारा जो प्ररूपित तत्त्व है वह मेरा धर्म है। यह सम्यक्त्व मैंने ग्रहण किया है। सम्यक्त्व के पांच अतिचार लक्ष्य के प्रति संदेह, लक्ष्य के विपरीत दृष्टिकोण के प्रति अनुरक्ति, लक्ष्यपूर्ति के साधनों (ज्ञान, दर्शन, चारित्र) के प्रति संदेहशीलता, विपरीत लक्ष्य वालों की प्रशंसा और उनसे परिचय । सम्यक्त्व के ये अतिचार ज्ञातव्य हैं, आचरणीय नहीं हैं। यदि जानअनजान में सम्यक्त्व से संबधित मैंने कोई दोष का सेवन किया हो तो मेरा वह दुष्कृत निष्फल हो । ३. तस्स सव्वस्स सुत्तं तस्स सव्वस्स देवसियस्स अइयारस्स दुच्चितिय-दुब्भासियदुच्चिट्ठियस्स आलोयंतो पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि । संस्कृत छाया शब्दार्थ तस्य सर्वस्य देवसिकस्य अतिचारस्य दुश्चितित-दुर्भाषित-दुश्चेष्टितस्य आलोचमानः प्रतिक्रामामि निंदामि उस सर्व देवसिक अतिचार की दुश्चितन, दुर्भाषित और दुश्चेष्टा की आलोचना करता हुआ प्रतिक्रमण करता हूं, निंदा करता हूं, गर्दा करता हूं, अपनी आत्मा (शरीर) का त्याग करता हूं। आत्मानं व्युत्सृजामि। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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