Book Title: Shraman Pratikraman
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 24
________________ श्रमण प्रतिक्रमण शब्दार्थ भावार्थ मैं सभी प्रकार के मानसिक, वाचिक और कायिक अतिचार की आलोचना, प्रतिक्रमण, निंदा और गर्दा करता हूं तथा अपने आपको उससे पृथक् करता हूं। ४. नमुक्कार-सुत्तं ५. सामाइय-सुतं' ६. मंगल-सुत्तं चत्तारि मंगलं-अरहंता मंगलं सिद्धा मंगलं साहू मंगलं केवलिपण्णत्तो धम्मो मंगलं । _चत्तारि लोगुत्तमा---अरहंता लोगुत्तमा सिद्धा लोगुत्तमा साहू लोगुत्तमा केवलिपण्णत्तो धम्मो लोगुत्तमा । चत्तारि सरणं पवज्जामि अरहते सरणं पवज्जामि सिद्धे सरणं पवज्जामि साहू सरणं पवज्जामि केवलिपण्णत्तं धम्म सरणं पवज्जामि । संस्कृत छाया चत्वारः मंगलं चार मंगल हैंअर्हन्तो मंगलं अर्हत् मंगल हैं सिद्धा मंगलं सिद्ध मंगल हैं साधवः मंगलं साधु मंगल हैं केवलिप्रज्ञप्तो धर्मो मंगलं केवली द्वारा प्रज्ञप्त धर्म मंगल है। चत्वारः लोकोत्तमाः चार लोकोत्तम हैंअर्हन्तो लोकोत्तमाः अर्हत लोकोत्तम हैं, सिद्धाः लोकोत्तमाः सिद्ध लोकोत्तम हैं, साधवः लोकोत्तमाः साधु लोकोत्तम हैं, केवलिप्रज्ञप्तो धर्मो लोकोत्तमः केवली द्वारा प्रज्ञप्त धर्म लोकोत्तम है। चतुरः शरणं प्रपद्ये चार की शरण स्वीकार करता हूंअर्हतः शरणं प्रपद्ये अर्हतों की शरण स्वीकार करता हूं, सिद्धान् शरणं प्रपद्ये सिद्धों की शरण स्वीकार करता हूं, साधून शरणं प्रपद्ये साधुओं की शरण स्वीकार करता हूं, केवलिप्रज्ञप्तं धर्म शरणं प्रपद्ये केवली द्वारा प्रज्ञप्त धर्म की शरण स्वीकार करता हूं। १,२. देखें-पहला प्रकरण । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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