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श्रमण प्रतिक्रमण
तिसृषु गुप्तिषु
तीन गुप्ति' चतुर्पु कषायेषु
चार कषाय' पञ्चसु महाव्रतेषु
पांच महाव्रत' षट्सु जीवनिकायेषु
छह जीवनिकाय सप्तसु पिण्डषणासु
सात पिण्डैषणा अष्टसु प्रवचनमातृषु
आठ प्रवचनमाता' नवसु ब्रह्मचर्यगुप्तिषु
नौ ब्रह्मचर्यगुप्ति दशविधे श्रमणधर्म
दसविध श्रमणधर्म में श्रमणानां
श्रमणों की योगानां
प्रवृत्तियों की यत् १. तीन गुप्तियां-मनोगुप्ति, वाग्गुप्ति, कायगुप्ति। २. चार कषाय-क्रोध, मान, माया, लोभ । ३. पांच महाव्रत-अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह । ४. षड्जीवनिकाय -पृथ्वीकाय, अपकाय, तेजस्काय, वायुकाय, वनस्पतिकाय,
और त्रसकाय । ५. सात पिण्डषणाएं-संसृष्ट', असंसृष्ट, उद्धृत, अल्पलेपा, अवगृहीत, प्रगृहीत,
उज्झित । ६. आठ प्रवचनमाताएं-पांच समितियां, तीन गुप्तियां। ७. नौ ब्रह्मचर्यगुप्तियां
१. निर्गन्थ स्त्री, पशु और नपुंसक से आकीर्ण शयन और आसन का
प्रयोग न करे। २. स्त्रियों के बीच कथा न कहे। ३. स्त्रियों के साथ एक आसन पर न बैठे। ४. स्त्रियों की मनोहर और मनोरम इन्द्रियों को दृष्टि गड़ाकर न
देखे । ५. स्त्रियों के कूजन, रोदन, गीत, हास्य, विलाप आदि के शब्द न
सुने। ६. पूर्व-क्रीडाओं का अनुस्मरण न करे । ७. प्रणीत आहार न करे । ८. मात्रा से अधिक न खाए और न पीए ।
९. विभूषा न करे। ८. दस प्रकार का श्रमण-धर्म-क्षांति, मुक्ति, आर्जव, मार्दव, लाघव, सत्य,
संयम, तप, त्याग, ब्रह्मचर्य ।
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