Book Title: Shraman Pratikraman
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 25
________________ श्रमण प्रतिक्रमण ७. पडिक्कमण-सुत्तं इच्छामि पडिक्कमिउं जो मे देवसिओ अइयारो को काइओ वाइओ माणसिओ उस्सुत्तो उम्मग्गो अकप्पो अकरणिज्जो दुज्झाओ दुविचितिओ अणायारो अणिच्छियव्वो असमणपाउग्गो नाणे दंसणे चरित्ते सुए सामाइए तिण्हं गुत्तीणं चउण्हं कसायाणं पंचण्हं महव्वयाणं छण्हं जीवनिकायाणं सत्तण्हं पिंडेसणाणं अट्ठण्हं पवयणमाऊणं नवण्हं बंभचेरगुत्तीणं दसविहे समणधम्मे समणाणं जोगाणं जं खंडियं जं विराहियं तस्स मिच्छामि दुक्कडं। संस्कृत छाया शब्दार्थ इच्छामि इच्छा करता हूं प्रतिक्रमितुं प्रतिक्रमण करने की यो जो मयो मैंने देवसिकः दिवस संबंधी अतिचारः अतिचार कृतः कियाकायिकः कायिक वाचिकः वाचिक मानसिकः मानसिक उत्सूत्रः आगम-विरुद्ध उन्मार्गः मार्ग के प्रतिकूल अकल्प्यः विधि के विरुद्ध अकरणीयः अकरणीय दुर्ध्यात: अशुभ ध्यान दुविचिन्तितः दुश्चिन्तन अनाचारः अनाचार अनेष्टव्यः अवांछनीय अश्रमणप्रायोग्यः श्रमण के लिए अयोग्य ज्ञान दर्शने दर्शन चारित्र श्रुत सामायिके सामायिक ज्ञाने चारित्रे श्रुते Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80