Book Title: Shraman Pratikraman
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 27
________________ १८ afusi यद् विराधितं तस्य मिथ्या मे दुष्कृतम् । भावार्थ संस्कृत छाया इच्छामि प्रतिक्रमितुं ऐर्यापfeter विराधनया गमनागमने प्राणक्रमणे अखंड आराधना न की हो जो विराधना की हो उससे सम्बन्धित निष्फल हो मेरा Jain Educationa International दुष्कृत । मैं अपने द्वारा किए हुए दैवसिक अतिचार के प्रतिक्रमण की इच्छा करता हूं, भले वह अतिचार कायिक, वाचिक या मानसिक हो । मैंने उत्सूत्र की प्ररूपणा की हो, मोक्षमार्ग के प्रतिकूल मार्ग का प्रतिपादन किया हो, विधि के विरुद्ध आचरण किया हो, अकरणीय कार्य किया हो, अशुभ ध्यान - आर्त्त - रौद्र ध्यान किया हो, असद् चिंतन किया हो, अनाचरणीय और अवांछनीय का आचरण किया हो, श्रमण के लिए अयोग्य कार्य का आचरण किया हो, ज्ञान, दर्शन, चारित्र, श्रुत और सामायिक के विषय में तथा तीन गुप्ति, चार कषाय, पांच महाव्रत, षड् जीवनिकाय, सात पिण्डैषणा, आठ प्रवचनमाता, नौ ब्रह्मचर्य गुप्ति तथा दस प्रकार के श्रमण धर्म में होने वाले श्रमण योगों की अखंड आराधना न की हो, विराधना की हो तो उससे संबंधित मेरा दुष्कृत निष्फल हो । ८. इरियावहिय-सुत्तं इच्छामि पsिesमिडं इरियावहियाए विराहणाए गमणागमणे पाणक्कमणे बोयक्कमणे हरियक्कमणे ओसा उत्तिंग पणगदगमट्टी - मक्कडासंताणा-संकमणे जे मे जीवा विराहिया एगिंदिया इंदिया ते इंदिया चउरिदिया पंचिदिया अभिहया वत्तिया लेसिया संघाइया संघट्टिया परियाविया किलामिया उद्देविया ठाणाओ ठाणं संकामिया जीवियाओ ववरोविया तस्स मिच्छामि दुक्कडं । शब्दार्थ श्रमण प्रतिक्रमण इच्छा करता हूं प्रतिक्रमण करने की पथ संबंधी विराधना के लिए जाने-आने में प्राणियों को लांघते समय For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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