Book Title: Shraman Pratikraman
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 11
________________ श्रमण प्रतिक्रमण संस्कृत छाया शब्दार्थ नमः अर्हद्भ्यः नमस्कार हो अर्हतों को नमः सिद्धेभ्यः नमस्कार हो सिद्धों को नमः आचार्येभ्यः नमस्कार हो आचार्यों को नमः उपाध्यायेभ्यः नमस्कार हो उपाध्यायों को नमः लोके सर्वसाधुभ्यः नमस्कार हो लोक में सर्व साधुओं को।' भावार्थ अर्हतों, सिद्धों, आचार्यों, उपाध्यायों तथा लोक में समस्त साधुओं को मेरा नमस्कार हो। ३. सामाइय-सुत्तं करेमि भंते ! सामाइयं सव्वं सावज्जं जोगं पच्चक्खामि, जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं-मणेणं वायाए काएणं, न करेमि न कारवेमि करतंपि अन्नं न समणुजाणामि, तस्य भंते ! पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि । संस्कृत छाया शब्दार्थ करोमि करता हूं भवन्त ! भगवन् सामायिक सामायिक सर्व सर्व सावध सपाप योगं प्रवृत्ति का प्रत्याख्यामि प्रत्याख्यान करता हूं। यावज्जीवं जीवन पर्यन्त त्रिविधत्रिविधेन' तीन-तीन प्रकार से मनसा मन से वाचा वचन से १. यहां अनुशासनहीन साधु विवक्षित नहीं हैं । जो ज्ञान, दर्शन तथा चारित्र की आराधना और अनुशासन से सम्पन्न हैं, वे ही साधुरूप में विवक्षित हैं। २. मकरः अलाक्षणिकः। ३. योगत्रिक करणत्रिकेण । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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