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श्राद्धविधिर
जब वह आगे एक गांवके समीप पहुंचा तब देबयोगसे गांवके लोग किसी एक मुरदे को उठाये स्मशान की ओर जा रहे थे। यह घटना देख प्रवासी महाशय जोर जोर से चिल्लाने लगे कि 'बहुत हो बहुत हो' उसके ये शब्द सुनकर वहां भी लोगोंने उसे अच्छी तरह मेथीपाक चखाया। पूर्वोक्त सर्व वृत्तान्त सुनाने पर छुट्टी मिली और यह शिक्षा मिली की ऐसे प्रेसंग यह पर बोलना - " ऐसा मत हो २” गांवमें प्रवेश करते समय रास्तेके पास एक मंडप में विवाह समारम्भ हो रहा था। औरतें मंगल गीत गा रही थीं, मंगल फेरे फिर रहे थे। यह देख हमारे प्रवासी महानुभाव वहां जा खड़े हुए और उच्चस्वर से पुकारने लगे कि “ऐसा मत हो २ ।” अपशकुन की बुद्धि से पकड़ कर वहां भी युवकोंने उसकी खूब ही पूजा पाठ की। इस समय भी उसने पहलेकी बनी हुई घटना और उनसे प्राप्त किये शिक्षा पाठ सुनाकर छुट्टी पाई। वहांसे भी उसे यह नवीन शिक्षा पाठ सिखाया कि भाई ऐसे प्रसंग पर बोलना कि - " निरन्तर हो २” । अब महाशयजी इस शिक्षापाठको घोखते हुये आगे बढे । आगे किसी एक भले मनुष्य को चोरकी भांति पुलिसवाले हथकड़ियां डाल रहे थे यह देख वह लड़का बोला कि-“निरन्तर हो २” यह शब्द सुन कर आरोपी के सम्बन्धियों ने उसे खूब पीटा वहां से भी पूर्वोक्त वृत्तांत कहकर मुक्ति प्राप्तकर और उनका सिखलाया हुआ यह पाठ याद करता हुआ आगे बला कि" जल्दी छूटो जल्दी छूटो" यह सुनकर रास्ते में बहुत दिनों के बाद दो मित्रों का मिलाप हो रहा था और वह अपनी मित्रताकी दृढ़ताकी बातें कर रहे थे यह देख हमारे महाशय उनके पास जा पहुंचे और जोर जोर से बोलने लगे कि - "जल्दी छूटो जल्दी छूटो" यह सुनकर अपमङ्गलकी बुद्धिसे उन दोनों मित्रोंने भी उसे अच्छी तरह उसकी मूर्खताका फल चखाया परन्तु उनके सामने पूर्वोक्त आद्योपान्त सर्ववृत्तांत कह देनेपर रिहाई पा कर आगे चला । 'किसी एक गांवमें जाकर दुर्भिक्षा के समय एक दरोगा के घरपर नौकर रहा' एक रोज दो पहरके वक्त दरोगा साहबके घरमें खानेके लिये राब बनाई थी उस वक्त दरोगा साहब किसी फौजदारीके मामले की जांच करनेके लिये बहुतसे आदमियोंको लिये चौपाल में बैठे हुये थे राव तयार हो जानेपर दरोगा साहबके नौकर उन्हें बुलाने के लिये चौपाल में जा पहुंचे और सब लोगके समक्ष दरोगा साहबके सन्मुख खड़े होकर बोलने लगे कि साहब जल्दी चलो नहीं तो राब ठंडी होजायगी यह बात सुनकर दरोगा साहबको बहुत ही लज्जा आई और घर आकर उसे खूब शिक्षा दी दरोगा साहबने उसे यह पाठ सिखलाया कि “ मूर्ख ! ऐसी लज्जा भरी बात गुप्त तौर से कहनी चाहिये परन्तु दूसरे मनुष्योंके सामने कदापि ऐसी बात न कहना" । कुछ दिनों के बाद दरोगा साहब के घर में आग लग गई। उस समय दरोगा साहब थाने में बैठे हुए फौजदारी मामले का कोई मुकदमा चला रहे थे। नौकर साहब दरोगाजीको बुलाने दौडे। परन्तु दरोगा साहबके पास उस समय बहुत से आदमी बैठे देख वह चुपचाप ही खड़ा रहा। जब सब लोग चले गये तब दरोगा साहबके पास जाकर बोला कि हुजूर घरमें आग लगी है। यह सुन कर दरोगा साहब को बड़ा गुस्सा आया । और वह बोले मूर्ख इसमें कहने ही क्या आया है ? घरमै आग लगी है और तू इतनी देरसे चुपचाप खडा है ऐसे प्रसंग
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निकलता देख तुरन्त ही धूल ( मिट्टी ) और पानी डाल कर ज्यों बने त्यों उसे बुझाने का प्रयत्न करना चाहिये जिससे कि अग्नि तुरंत बुझ जाय । एक रोज दरोगा साहब ठंडीके मौसममें जब कि वह अपनी