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श्राद्ध-विधि प्रकरण इस गाथा में मंगल निरूपण करके विद्या, राज्य और धर्म ये तीनों किसी योग्य मनुष्य को ही दिये जाते हैं अतः श्रावक धर्मके योग्य पुरुषका निरूपण करते हैं ।
सडत्तणस्सजुग्गो भद्दगपगई विसेसनिउणमई।
नयमग्गरईतह दढनिअवयणठिइविणिदिछो॥१॥ १ भद्रक प्रकृति, २ विशेष निपुणमति-विशेष समझदार, ३ न्यायमार्गरति और दृढनिजप्रतिशस्थिति। इस प्रकार के चारगुण संपन्न मनुष्य को सर्वज्ञोंने श्रावक धर्म के योग्य बतलाया है । भद्रक प्रकृति याने माध्यस्थादि गुणयुक्त हो परन्तु कदाग्रह ग्रस्त हृदय न हो ऐसे मनुष्य को श्रावक धर्म के योग्य समझना चाहिये। कहा है कि
रत्तो दुठ्ठो मूढो पुव्ववुग्गाहिओ अ चत्तारि ।
एए धम्माणरिहा अरिहो पुण होइ मझ्झथ्यो ॥१॥ . १रक याने रागीष्ट मनुष्य धर्मके अयोग्य है। जैसे कि भुवनभानु केवली का जीव पूर्षभव में राजा का पुत्र त्रिण्डिक मत का भक्त था। उसे जैनगुरु ने बड़े कष्टसे प्रतिबोध देकर ढधर्मी बनाया, तथापि वह पूर्वपरिक्ति त्रिदंडीके वचनों पर दृष्टीराग होने से सम्यक्त्व को वमनकर अनन्त भवोंमें भ्रमण करता रहा ।२ द्वषी भी मद्रबाहु स्वामीके गुरुबन्धु बराहमिहरके समान धर्मके अयोग्य है । ३ मूर्ख याने वचन भावार्थ का अनजान ग्रामीण कुल पुत्र के समान, जैसे कि किसी एक गांवमें रहनेवाले जाटका लड़का किसी राजा के यहां नौकरी करने के लिये क्ला, उस समय उसकी माताने उसे शिक्षा दी कि बेटा हरएक का विनय करना। लड़के ने पूछा माता! विनय कैसे किया जाता है ? माता ने कहा "मस्तक झुकाकर जुहार करना" ।माता का वचन मम में धारण कर वह विदेशयात्राके लिये चल पड़ा। मार्गमें हिरनोंको पकड़नेके लिये छिपकर खड़े हुवे पारधियोंको देखकर उसने अपनी माताकी दी हुई शिक्षाके अनुसार उन्हें मस्तक झुकाकर उच्च स्वरसे जुहार किया। ऊंचे स्वरसे की हुई जुहार का शब्द सुनकर समीपवर्ती सब मृग भाग गये, इससे पारधियोंने उसे खूब पीटा। लड़का बोला मुझे क्यों मारते हो, मेरी माता ने मुझे ऐसा सिखलाया था, पारधी बोले तू बड़ा मूर्ख है ऐसे प्रसंग पर "चुपचाप आना चाहिये” वह बोला अच्छा अबसे ऐसा ही करूंगा। छोड़ देने पर आणे. पला । आगे रास्तेमें धोबी लोग कपड़े धोकर सुखा रहे थे। यह देख वह मार्ग छोड़ उन्मार्मसे चुपचाप धीरे धीरे तस्करके समान डरकर चलने लगा। उसकी यह चेष्टा देख धोबियोंको चोरकी शंका होनेसे पकड़ कर खूब माय । पूर्वोक्त हकीकत सुनानेसे धोबियोंने उसे छोड़ दिया और कहा कि ऐसे प्रसंग पर “धौले बनो, उज्वल बनो" ऐसा शब्द बोलते चलना चाहिये। उस समय वर्षात की बड़ी चाहना थी, रास्तेमें किसान खड़े हुये खेती योनेके लिये आकाशमें बादलों की ओर देख रहे थे। उन्हें देख वह बोलने लगा कि “धौले बनो उज्वल बनो" । अपशकुनकी भ्रान्तिसे किसानोंने उसे खूब ठोका । वहां पर भी पूर्वोक्त घटना सुना देनेसे कृषकोंने उसे छोड़ दिया और सिखाया कि ध्यान रखना ऐसे प्रसंग पर “बहुत हो बहुत हो" ऐसा शब्द बोलना।