________________
प्रस्तावना
विषय
पृष्ठ |
विषय
___ २ कर्म अनुयोगद्वार तीसरी गाथाका अर्थ
तपःकर्म विचार टीकाकारका मङ्गलाचरण
तपःकर्मके भेद-प्रभेद कर्म अनुयोगद्वारके कथनकी प्रतिज्ञा
तपका लक्षण कर्म अनुयोगद्वारके १६ अधिकार
अनेषण तप और उसका फल कर्मनिक्षेपका विचार
अवमौदर्य तप और उसका फल कर्मनिक्षेपके दस भेद
स्त्री और पुरुषके ग्रासका नियम कौन नय किस निक्षेपको स्वीकार करता
वृत्तिपरिसंख्यान तप और उसका फल है, इस बातका विचार
रसपरित्याग तप और उसका फल नैगम, व्यवहार और संग्रह नयकी अपेक्षा
कायक्लेश तप और उसका फल उसका विचार
विविक्तशय्यासन तप और उसका फल ऋजुसूत्र नयकी अपेक्षा विचार शब्द नयकी अपेक्षा विचार
प्रायश्चित्त तप नामकर्मका विचार
प्रायश्चितके दस भेद और उनका स्वरूप स्थापनाकर्मका विचार
विनय तप द्रव्यकर्मका विचार
वैयावृत्त्य तप प्रयोगकर्मका विचार
व्युत्सर्ग तप प्रयोगकर्मके तीन भेद और स्वामी
ध्यान तप समवदानकर्मका विचार
ध्यानके चार अधिकार अधःकर्मका विचार
| ध्याताका विशेष विचार
ध्येयका विशेष विचार ईपिथकर्म और उसके स्वामीका विचार ४७ | पुरानी तीन गाथाओंके आधारसे ईर्यापथ- [ध्यानके दो भद कर्मका विशेष विवेचन
धर्मध्यानके चार भेद प्रथम गाथाका अथ
| आज्ञाविचय धर्मध्यान ईर्यापथकर्ममें प्रदेश व अनुभागका विचार ४९ अपायविचय धर्मध्यान ईर्यापथकर्म सातारूप है, इस प्रसंगसे
| विपाकविचय धर्मध्यान सुखका विचार
संस्थानविचय धर्मध्यान दूसरी गाथाका अर्थ
, धर्मध्यान और शुक्लध्यानका विषय जिन देव आमय और तृष्णासे रहित क्यों एक होकर भी उन दोनों ध्यानोंमें हैं, इस बातका विचार
५३ भेदोंका कारण
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org