Book Title: Sansar aur Samadhi
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 21
________________ कबीरा खड़ा बाजार में, लिये लकुटिया हाथ। जो घर फूंके आपना, चले हमारे साथ।। फूंको अपना मोह, मोह का घर। जिंदगी तो चार दिन की उधार है। बड़ी मुश्किल से यह उधार मिलती है। आरजू और इंतजारी में ही इसे मत बिताओ। जागो, दिन में बनाये सपनों से। सपनों में सरको मत। मजे की बात यह है कि यहां सपना हर कोई देखता है। संसार जन्म-जन्मान्तरों से जुड़ा है, तो सपना भी जुड़ा है। सारा संसार सपनों के रंग में भीगा है। उसका बीता हुआ समय भी एक सपना था। वर्तमान भी एक सपना है। भविष्य भी एक सपना होगा। सपने ही तो उसके भावी जीवन को मोड़ते है। एक बात पक्की है कि सपने आखिर नश्वर हैं। मुंदी आंखों का दर्शन है। चूंकि सपने नश्वर है, अतः यह सपनों का बना संसार भी नश्वर है। बहुत से लोग सोये-सोये सपने देखते हैं, तो बहुत-से जगे-जगे। बहुत सारे लोग रात को सपना देखते हैं और बहक पड़ते है। मैंने अपने कई साथियों के साथ यों होते देखा है। मेरा एक दोस्त रात को बहुत बहकता था। मैंने अपने एक अन्य साथी को पूछा, भाई! गिलास कहां है? उसी समय हमारे पास सोया वह दोस्त बहका, 'रेपिडेक्स इंगलिस स्पीकिंग कोर्स में। हम सब हंस पड़े। वह दोस्त उस समय उसी की पढ़ाई किया करता था। अतः जब वह सपना देखेगा या बहकेगा, तो निश्चित ही वही मुख से निकलेगा। इसीलिए मैंने कहा कि संसार को सपने की तरह देखो। संसार का मतलब है संसरण करना, गति करना। जन्म-मरण के चाक के सहारे गति करना। गति चालू रहती है, व्यक्ति कुछ दिनों की जिंदगी जीता है और खाली हाथ, हाथ पसारे चला जाता है। इस चार-दिन की जिंदगी में बहुत से आदमी अपनी चादर को उजली कर लेते हैं, तो बहुत से मैली। आखिर वही चादर ओढ़कर जाता है। कबीरा हो तो जैसी की तैसी धरि दीन्ही चदरिया कहते। हम तो बस कथरी पर ही गुमान कर रहे हैं। माटी री आ काया, आखिर माटी में मिल जावे है। क्यां रो गरव करे रे मनवा, क्यां पर तूं इतरावे है। जिण तन ने मीठा माल खवा, तूं निशदिन पाळे पोसे है। अपणे इक पेट री आग बुझावण, कित्तां रा मन रोसे है। थोड़े जीणे रे खातिर क्यूं, भारी पाप कमावे है। संसार और समाधि 10 -चन्द्रप्रभ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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