________________
यही जिन्दगी मुसीबत, यही जिंदगी मुसर्रत (आनन्द)।
यही जिन्दगी हकीकत, यही जिन्दगी फसाना। मैने सुना है; किसी ने, किसी से पूछा, भाई कहां जाते हो? उसने कहा- जिधर वह गधा जाता है। आदमी गधे पर सवार था। पूछने वाले व्यक्ति के बात समझ में न आयी। जहां गधा जाता है, वहां मैं जाता हूं, तो क्या गधे से पूछा जाए कि वह किधर जा रहा है? क्या यह जवाब देगा?
उसने कहा- भाई! तेरी बात समझ में न आयो। तो वो बोला- गधा मेरे काबू में नहीं है। मैं गधे के काबू में हूं। मैं दाये चलाना चाहता हूं तो वह बायें चलता है। मैं जब इसे बायें चलाने की कोशिश करता हूं, तो यह दायें चलता है। मैं घर जाना चाहता हूं तो वह बाजार की ओर चलता है और बाजार की ओर घुमाता हूं तो वह घर की ओर चलता है। मैने सोचा यह तो फजीती हो गयी। लोग क्या समझेंगे कि गधा मेरे काबू में नहीं है। मैं गधे से भी गया-बीता हूं; इसलिए मैने लगाम ढीली छोड़ दी है। जिधर चाहे उधर यह चले। कम-से-कम फजीती तो न होगी। मेरी इज्जत तो नहीं लुटेगी।
तो उसने पूछा- आखिर गधे ने तुम्हें कहां पहुंचाया? बोला- सुबह गांव से शहर की ओर चला। अभी तक कहीं नहीं पहुंचा। शहर के नरक के पास खड़ा हूं। अकूड़ी तक पहुंचा हूं।
पूछने वाले ने आगे बढ़ते हुए कहा- भाई! मैं तो आगे जा रहा हूं, पर तू इतना जरूर सोच कि तुम दोनों में गधा कौन है? __ मनुष्य ऐसी ही जिन्दगी जी रहा है। फजीहत से घबराता है। जिधर चित्त जाता है, व्यक्ति स्वयं को उधर का राही बना लेता है। दिशाहीन यात्रा भला कहां पहुंचाएगी? ज्यादासे-ज्यादा दुकान-से-घर और घर-से-दुकान। घर-से-घाट और घाट-से-घर। जिन्दगी की अनमोल घड़ियां इसी के बीच बीत जाती हैं।
चित्त अचेतन है। व्यक्ति स्वयं सचेतन है, पर क्या खूब है कि ड्राइवर कार नहीं चलाता, अपितु जिधर कार जा रही है, उधर ड्राइवर है; क्योंकि बॅक फैल है। ऐसी दशा में क्या कहीं किसी गन्तव्य की संभावना है? क्या कहीं कोई मंजिल है?
ताब मंजिल रास्ते में, मंजिलें थीं सैकड़ों। हर कदम पर एक मंजिल थी, मगर मंजिल न थी।।
संसार और समाधि
99
-चन्द्रप्रभ
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org