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मन्दिर भी बहुत जा रहे हैं, पर भक्ति वीणा भीतर में झंकृत नहीं हो रही है। ध्यान सौ बीमारियों की दवा है। भीतर बैठेंगे तब ऐसी स्थिति होगी क्रोध जल गया, कषाय गल गया, तपस्या शुरू हो गई, पाप छूट गये, प्रतिक्रमण हो गया। समता के भाव जग गये, सामायिक हो गई। भगवान आकर बस गये, भगवान की पूजा हो गई। भीतर का अभ्यास हो जाए तो जीवन की ज्योतिर्मयता असंदिग्ध है भीतर हजारों दीयें जल रहे हैं। अन्तर मार्ग से रोशनी बह रही है। अपना प्रकाश देखो। प्रकाश भीतर है। केवल बाहर में आवरण आ गये हैं। भीतर का दीया बुझा हुआ नहीं है। भीतर के दीये को जलाना नहीं है वह तो ज्योतिर्मय है। प्रकाश ही प्रकाश है। बाहर के आवरणों को हटा दो। पर का राग, पर की परणिती, पर का सम्मोहन, पर का आकर्षण, पर का जोड़ जैसे-जैसे मौनव्रत लेगा, वैसे-वैसे अन्तर्यात्रा त्वरा से होगी।
और जब अन्तर्यात्रा अपने समापन की बेला पर हो, तो यात्रा होगी परमात्मा की, स्वयं की विराटता की। ___ डग भरें स्वयं के मार्ग में। मैं केवल एक हूं, यह बोध ही सम्बोधि है और यही है एकान्त
और कैवल्या एकान्त, मौन और ध्यान के चरण ही पहुंचाते हैं समाधि की मंजिल तक। समाधि समाधानों का समाधान है, सड़कों की सड़क है। समाधि में जीने वाला सम्राट है सत्य के साम्राज्य का।
संसार और समाधि
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-चन्द्रप्रम
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