Book Title: Sansar aur Samadhi
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 169
________________ तक हैं। मन में जितनी गहरी वासना है, उतनी ही गहरी मुक्ति की भावना होगी, तभी पुनर्जन्म को जड़ उखड़ सकती है। जीवन का फूल सोये-सोये न मुरझा जाये, इसके लिए सावचेत रहना जीवन-कर्त्तव्य है। प्राप्त क्षण को बेहोशी में भुला बैठना वर्तमान को ठुकराना है। वर्तमान का अनुपश्यी ही अतीत के नाम पर भविष्य का सही इतिहास लिख पाता है। वर्तमान से हटकर केवल भूत-भविष्य के बीच जीवन को पेंडुलम की तरह चलाने वाला अधर में है। वर्तमान जीवन की मौलिकता है। वह देह नहीं, वह प्राण है। कज्जल/धवल देह के भीतर पालखी मारे जमा है एक जीवन-साधक। उसे पहचानना ही जीवन की सच्चाइयों को भोगना है। वहां बिन बादल बरसात होती है, बिन टकराहट बिजली चमकती है। मूक है वहां भाषा/भाषण। अनुभव के झरने में आवाज नहीं, मात्र अमृत स्नान होता है। समाधि उस जीवन-साधक से साक्षात्कार है। यह स्थिति पाने के लिए हमें पार करने होंगे समाधि के चरणों को। समाधि मार्ग नहीं समाधि लक्ष्य है, मंजिल है। समाधि के तीन चरण हैं- एकान्त, मौन और ध्यान। एकान्त संसार से दूरी है, पौन अभिव्यक्ति से मुक्ति है और ध्यान विचारों से निवृत्ति है। घर-भर के सभी सदस्य अपनेअपने काम से बाहर गए हुए हैं। हम घर में अकेले हैं। यह हमारे लिए एकान्त का अवसर है। कुछ समय के लिए घर भी गुफा के एकान्तवास का मजा दे सकता है। अभिव्यक्ति रुकी, तो दोस्ती-दुश्मनी के सामाजिक रिश्ते अधूरे/थमे रह गये। भला, गूगों का कोई समाज/संबंध होता है। जब किसी से कुछ बोलना ही नहीं है तो विचार क्यों/ कैसे तरंगित होंगे। निर्विचार-ध्यान ही समाधि का प्रवेश द्वार है। _____ व्यक्ति रात-भर तो मौन का साधक बनता ही है, किन्तु वह सोये-सोये। दिन में नींद नहीं होती, जाग होती है, पर मन बड़बोला रहता है। अध्यात्म में प्रवेश के लिए एकान्त उपयोगी है और मौन भीड़ में भी अकेले रहने की कला है। जीवन में मौन अपना लेने से व्यावहारिक झगड़े तथा मुसीबतें भी कम हो जाएंगी। मौन विचारों की शक्ति का ह्रास नहीं; अपितु उसका एकत्रीकरण है। भाषा आन्तरिक ऊर्जा को बाहर निकाल देती है, किन्तु मौन ऊर्जा-संचय का माध्यम है। बहिर्जगत से अन्तर्जगत में प्रवेश के लिए मौन द्वार है। स्वयं की नई शक्तियों का आविर्भाव करने के लिए मौन प्राथमिक भूमिका है। इसलिए मौन अपने आप में एक ध्यान-साधना है। यह वाणी-संयम का प्रहरी है, शक्ति-संचय करने वाला भण्डार है, सत्य को अनुक्षण बनाए रखने वाला मंत्र है। संसार और समाधि 158 -चन्द्रप्रभ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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