Book Title: Sansar aur Samadhi
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

View full book text
Previous | Next

Page 147
________________ काम का? मेरे दिल में उसके प्रति स्वागत-भाव रहता है, जिसके हृदय में जागरण-कास्वागत है। भगवान् हमारे द्वार पर है, स्वागत गीत गाएं, आरती उतारें। मानस में जागरण इतना प्राणवन्त हो जाये कि भेद-विज्ञान उससे जुदा न रह पाये, पर स्वयं आये अनक्षर बन, मन-की-शून्यता में, समाधि हमसफर बन जाये सांसों की हर ऊर्ध्वता और नम्रता में। फिर खुद-ब-खुद हो जायेगा मन के अनन्त संसार का अन्त; हमारी ही बौनी अंगुलियां खीचेंगी उस अनन्त की सीमा-रेखा। संसार और समाधि 136 -चन्द्रप्रभ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172