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काम का? मेरे दिल में उसके प्रति स्वागत-भाव रहता है, जिसके हृदय में जागरण-कास्वागत है। भगवान् हमारे द्वार पर है, स्वागत गीत गाएं, आरती उतारें।
मानस में जागरण इतना प्राणवन्त हो जाये कि भेद-विज्ञान उससे जुदा न रह पाये, पर स्वयं आये अनक्षर बन, मन-की-शून्यता में, समाधि हमसफर बन जाये सांसों की हर ऊर्ध्वता और नम्रता में। फिर खुद-ब-खुद हो जायेगा मन के अनन्त संसार का अन्त; हमारी ही बौनी अंगुलियां खीचेंगी उस अनन्त की सीमा-रेखा।
संसार और समाधि
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-चन्द्रप्रभ
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