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________________ हमें अपनी खुमारी को समझना चाहिये। हम अपनी तन्द्रा को पहचानें और जागें। मंदिरों में बजाये जाने वाले बड़े-बड़े घण्टों का यही रहस्य है। घण्टे बजाना आम है। क्या घण्टा बजाकर तुम अपने आने की खबर परमात्मा तक पहुंचा रहे हो या भगवान को सोया समझ जगाने की पहल कर रहो हो ? मंदिर में घण्टा परमात्मा के लिए नहीं, अपने लिए बजाया जाता है। उस चित्त के लिए बजाया जाता है, जो सारे जहान की तन्द्रा में तल्लीन है। स्वयं को जगाने के लिए घण्टारव है। खुद जगे तो खुदा जगा। खुदा उसके लिए हर हमेशा सोया रहेगा, जो खुद सोया है। जागरण भगवान् की भगवत्ता को आत्मसात् करने का पहला चरण भी है और आखिरी भी। दूसरे के मन की बातों को जानने के लिए स्वयं की भाव- उर्मियों को दूसरों के हृदय में प्रतिबिम्बित करने के लिए आत्म जागरण सर्वोपरि है। इसकी सानी का कोई विकल्प नहीं है। जागरण- समाधि ही ध्यान-समाधि का प्रवेश द्वार है। अगर जागरण जीवन्त है, तो संसार की हर घटना खुद को खुद . के पास ले जाएगी। खुद में चलने के लिए प्रेरित करेगी। खुद में खुद के चलने का नाम ही ब्रह्मचर्य है। यदि हम जागरण का दीप जीवन की देहलीज पर रख दें, तो उजाला बाहर भी होगा और भीतर भी। फिर संसार हमारे लिए बंधन नहीं, मुक्ति में मददगार होगा। जन्म-मरण की लहरों से भरे संसार के समन्दर में आत्म- जाग्रत पुरुष होगा द्वीप, दीप शिखा, गति, प्राण-प्रतिष्ठा । हम सीखें अशब्द को सुनना। अशब्द में जीना ही ध्यान है। भीड़-भरी दुनिया में अकेले होने का मजा चखें। अपनी आंखों को अर्थ-भरी करें। परम त्याग और परम ध्यान के पथ पर चलने के लिए मित्र भाइयों को खुल्ला न्यौता है। मैं चाहता हूं कि कोई भी व्यक्ति मानवीय दृष्टि से विकलांग न हो। जीवन का कोई भी क्षण दर्द और दुःख से व्यथित न पाए। व्यक्तित्व के किसी भी अंग का पक्षाघात न हो। जीवन महान् उपलब्धि है। उसे सुख और शान्ति की अनुभूति के साथ जीना है । जीवन का कोई भी क्षण अर्थहीन न बने। जीवन को परम श्रेय के साथ मंजिल तक ले जाना ही आध्यात्मकि जीवन को आचरण में प्रकट करना है। यही जीवन का विधायक इंकलाब है। स्वयं की बुद्धि को जगाएं। खुद की बुद्धि सुस्त रखेंगे तो मेरा कोई प्रयोजन नहीं होगा। शास्त्र हमारे लिए जीवन के अनुशास्ता नहीं बन पायेंगे। आंखे ही नहीं, तो आईना किस संसार और समाधि 135 Jain Education International For Personal & Private Use Only - चन्द्रप्रभ www.jainelibrary.org
SR No.003899
Book TitleSansar aur Samadhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1991
Total Pages172
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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