Book Title: Sansar aur Samadhi
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 152
________________ परिवर्तन में अपना विश्वास-प्रस्ताव पारित करो। क्या नहीं सुना है तुमने 'मन चंगा तो कठौती में गंगा?' अगर अन्तरंग को न बदल पाये तो सारा बदलाव गीदड़ द्वारा हिरण की खाल ओढ़ना है। स्वयं को अन्तर-जगत में निर्विष किये बिना किया गया आचरण बिच्छु का तार्किक संवाद है। ___ध्यान स्वयं को देखना है, स्वयं के द्वारा देखना है, स्वयं में देखना है। इसलिये ध्यान पूरे तौर पर अपने आपको हर कोण से ऊपर उठकर देखने की कला है। जहां शरीर, वचन और मन का अंत आ जाता है वहीं यात्रा प्रारंभ होती है अनन्त की। डूबे हम स्वयं में ताकि उभर पड़े नयनों में नयनाभिराम अन्तर्यामी। निमंत्रण है सारे जहान को अनन्त का, अनन्त को लहरों में। अनन्त का निमंत्रण चूकने जैसा नहीं है। स्वयं को आर-पार देखो। शरीर, मन, वचन जीवन की उपलब्धि अवश्य है, पर वह माटी के दिये से ज्यादा नहीं है। उस दिये से ऊपर भी अपनी नजरें उठायें, जहां लौ माटी के दिये को प्रकाश से भिगो रही है। ज्योति का आकाश की ओर उठना ही चेतना का ऊर्ध्वारोहण है। ज्योति की पहचान से बढ़कर जीवन का कोई बेहतरीन मूल्य नहीं है। मत्य में अमत्य की पहचान ही अमृत-स्नान है। संसार और समाधि 141 -चन्द्रप्रभ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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