Book Title: Sansar aur Samadhi
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 114
________________ जानते हैं उन सज्जन ने क्या कहा? कहने लगे- मंदिर जाता हूं, तो जैसे ही किसी सुन्दर स्त्री को वहां देखता हूं, मेरी आंखें मलिन हो जाती हैं। एकाग्रता धूमिल हो पड़ती है। मैंने सोचा यहां दृष्टि निर्मल नहीं रह पाती, इसलिए मैंने मंदिर जाना छोड़ दिया। मैंने कहा- वह आपकी नासमझी है। अगर बदलना ही है तो अपनी नजरों को बदलो। मंदिर जाना बंद क्यों करते हो? अपनी वृत्ति और अपनी कमजोरी को न पहचान कर दोष डाल रहे हो किसी सुन्दर स्त्री पर, भगवान के मंदिर पर। अपराधी न स्त्री है और न स्त्री का सौन्दर्य। अपराधी तुम स्वयं हो। अपराध तुम्हारी स्वयं की कमजोरी है। चोर स्वयं हो और दोष मंड रहे हो अन्यों पर। जब ध्यान करने बैठोगे तब मन की चंचलता उभरती दिखायी देगी। वास्तव में वह मन की चंचलता है ही नहीं। तुम बैठे हो एकान्त में तो मन तुम्हें कुछ सुनाना चाहेगा। वह तुम्हारे स्वयं की कहानी सुनायेगा। क्या तुमने कभी अपनी आत्मकथा पढ़ी है? गांधी या टॉल्सटाय की आत्मकथा पढ़ने वाले लोग कभी अकेले में जाकर बैठे और खुद पढ़ें खुद को आत्मकथा को। जन्म से लेकर अब तक जो भी अच्छा-बुरा किया है, उसका सारा इतिहास अपने मस्तिष्क में स्मरण करो, उसका मनन करो और गांधी की आत्मकथा की तरह उससे कुछ सीखो। आश्चर्य होगा आपको कि गांधी की आत्मकथा पढ़ते-पढ़ते अभी तक जीवन में कोई क्रान्ति न आयो, पर स्वयं की आत्मकथा पढ़ते-पढ़ते जिंदगी एक ही दिन में गांधी के मंच पर जा चढ़ी। दूसरे की आत्मकथा को सौ बार पढ़ने की बजाय स्वयं की आत्मकथा को एक बार पढ़ना ज्यादा बेहतर है। ध्यान के समय मन अगर चंचल होता लगे, तो ध्यान से भागना मत, अपितु मन के व्यक्तित्व को और उसकी गतिविधियों को समझना; मन को टिकाने का अचूक साधन है। मन कुछ सुनाने को उत्सुक है। वह लालायित है कुछ कहने को, पर वह सुनायेगा व्यक्ति को एकान्त में ही। जब सुनना चाहोगे तभी सुनायेगा। जब आंखे बंद हों, होठ चुप हों, काया टिकी हो, तभी मन हमारे कानों में कुछ गुनगुना सकता है। मन की गुन-गुनाहट और फुस-फुसाहट को सुनने की कोशिश कीजिये। मन अच्छी बातें कहने के लिए कभी नहीं आयेगा। वह स्वयं नहीं सिखायेगा, अपितु सीखने के निमित्त उपस्थित करेगा। वह व्यक्ति के बदकिस्मत बने अतीत से सीखने के संसार और समाधि 103 -चन्द्रप्रभ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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