Book Title: Sansar aur Samadhi
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 126
________________ आदमी कहता है मैं कर रहा हूं परार्थ, दूसरे के सुख के लिए। पिता कहेगा मैं परार्थ कर रहा हूं बेटे के लिए। पति कहता है मेरा सारा परार्थ पत्नी के लिए है। परन्तु पत्नी कहेगी मैं तो तंग आ चुकी हूं अपने पति से। बेटे से पूछो । बेटा कहेगा बाप अगर दो दिन गांव के बाहर रहे तो मेरी बेचैनी टलेगी। दोस्तों के इस सदर सदमे उठाये जाने पर दिल से दुश्मन की शिकायत का गिला जाता रहा। अब गम दुश्मनों से नहीं, दोस्तों से है। आप जो करते हैं अपने वालों के लिए, पर अपने वाले रूठे हैं आपके अपनेपन से। मित्रों ने ही इतने सदम दिये हैं कि अब दुश्मनों की क्या शिकायत करनी! ___ कहते हैं मैं भगवान को पूजता हूं। पर भगवान से पूछो। वे कहेंगे तूं मुझे पूजने के लिए मंदिर नहीं आता; तूं मन्दिर आता है अपनी कामना को बुझाने के लिए। बेटा चाहिए इसलिए मन्दिर आया है, धन चाहिए इसलिए मंदिर आया है। मेरी पूजा तो तब होती है जब तुम दुकान में बैठे-बैठे जमाखोरी, चोरी, सीनाजोरी करते वक्त भी ध्यान रखो कि भगवान यह सब देख रहा है। छिपकर पिया गया जहर क्या मृत्यु का कारण नहीं होगा? इसलिए मन्दिर में ही नहीं, बाजार में भी पूजो! पूजा का स्थल तो यहां-वहां सारा जहां है। निर्लज्ज और भिखमंगी प्रार्थनाएं मन की भाषा है, चैतन्य की नहीं। मन्दिर वास्तव में परमात्मा के प्रति स्वयं का समर्पण है, स्वयं का जागरण है। वह हमारा प्रतिबिम्ब है। उसमें बैठी प्रतिमा गूंगी है। आईना भी गूंगा ही होता है। फिर भी वह, वह सब कुछ बोल सकता है जो हम हैं। सम्यग दर्शन की बारीकी हो, तो मन्दिर हमारे अन्तरजगत का अभिव्यक्त घर है। लक्ष्य आंखों से ओझल न हो, इसलिए मन्दिर और मूर्तियां हैं। मन्दिर तो बहाना है हमारी आध्यात्मिक सजगता का, लक्ष्य के प्रति कटिबद्धता का। परमात्मा के लिए चाहिए तल्लीनता. रसमयता, सजगता। रोजाना सुबह उठ कर मन्दिर जाना चाहिए-- इसे मात्र दैनंदिनी जिंदगी का एक अभ्यास-सूत्र न बना लें। परमात्मा अभ्यास में नहीं है। परमात्मा स्मरण में है। आत्मा किसी आदत मे नहीं है। आत्मा स्वयं के रमण में है, स्वयं की स्वीकृति में है। इसलिए याद कर सको तो अपने आप को याद करते चले जाओ। तुम तुम हो। तुम में अनन्त सम्भावनाएं हैं। अपनी सम्भावनाओं का साक्षात्कार करो। संसार और समाधि 115 --चन्द्रप्रम Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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