Book Title: Sansar aur Samadhi
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 115
________________ लिए व्यक्ति को प्रेरित और उत्साहित करेगा। वह अपने पॉकेट में दबी कतरन को दिखायेगा। स्वयं के सोये पुरुषार्थ को जगाने के लिए मन चुल्लू-भर पानी छिटकेगा। कभी पूरी न होने वाली उन हवाई कल्पनाओं से साक्षात्कार करवायेगा, जिसका अंकुरण व्यक्ति ने स्वयं किया है; जिन्दगी-भर किया है, इसलिए ध्यान के समय होने वाली मन की चंचलता वास्तव में व्यक्ति की अतृप्ति और तृष्णा का छायांकन है। इसीलिए मैं कहता हूं कि अपनी कमजोरी को समझने की कोशिश कीजिये। अपनी वासना और अपनी सेक्स-भावना को पहचानने की चेष्टा कीजिये। जिस क्षण स्वयं को दुर्बलता को समझोगे उसी क्षण चित्त मार से अकम्पित हो जाएगा। उसका सारा आंदोलन राम से जुड़ा होगा, न कि मार से। ____व्यक्ति दुःखी जब-जब भी होता है, मार के कारण होता है, पर अब वह इतना अभ्यस्त हो चुका है कि वह खुजली खुजलाने में सुख की अनुभूति कर रहा है। यदि कोई इसे सुख कहता भी है, तो यह सुख चक्षुष्मान कभी नहीं हो सकता। यह सुख सूरदास है। खुजलाने से मिलने वाले आनंद का अनुभव तो बार-बार स्मरण आता है और फिर-फिर खुजलाने के लिए तत्पर हो जाते हो। पर जरा याद करना उस दर्द को, उस पीड़ा को, उस मवाद और उस खून को, जो परिणाम है खुजलाने का। उस रास्ते क्या चलना जो बढ़ाये जा रहा है अन्धकूप की ओर। स्याही से कपड़े को भिगो कर साबुन से धोने की अपेक्षा तो अच्छा तो यही है कि उसे स्याही से भिगोया ही न जाए। गंगा पवित्र है, उजली है; पर तभी तक जब तक वह अपने स्वरूप में है। विपरीत के साथ उसका मेल उसकी पवित्रता के लिए चुनौती है। चित्त का प्याला अगर शान्त हो जाए तो वही समाधि है, अगर वासना से प्रभावित हो जाए तो उसी प्याले में तूफान है और अगर परमात्मा से आन्दोलित हो जाए तो उसी में आसमान है। संसार और समाधि 104 --चन्द्रप्रम Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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