________________
आइये, करें जीवन-कल्प चित्त परमाणुओं की ढेरी है। हर मनुष्य की यह निजी सम्पत्ति है। एक मनुष्य के पास कहने को तो एक ही चित्त होता है; किन्तु उस एक में अनगिनत सम्भावनाएं छिपी हुई हैं।
चित्त का अपना समाज होता है। जितना ज्यादा सम्पर्कऔर जितनी कल्पना, चित्त का समाज उतना ही ज्यादा विस्तृत, इसलिए चित्त हमारा घर नहीं है, वरन् इलाका है। इसमें कई गलियां हैं। कई कमरे हैं। इसका अपना बगीचा है। कई पाठशालाएं हैं। दोस्तों और दुश्मनों को भी कमी नहीं है।
चित्त व्यक्ति की अनन्त कल्पनाओं और संभावनाओं का आईना है।
मनुष्य आमतौर पर सचित्त ही रहता है। अचित दशा तो झील-का-शान्त होना है। चित्त ही व्यक्ति की चल सम्पत्ति है। यदि जीते-जी अचित/अचल-दशा की अनुभूति हो जाए तो वह समाधि-के-पार की अनुभूति है। अचित दशा में चित्त के परमाणु तो रहते हैं, मगर परमाणुओं का संघर्ष नहीं रहता। सरोवर तो जल से लबालब रहता है, पर हवाई तरंगें समाप्त हो जाती हैं। ठहर-ठहर कर उठने वाली विचारों और कल्पनाओं की तरंगें ही चित्त-चांचल्य है। जिस क्षण वायवी कल्पनाएं जाम होंगी, कक्ष निर्वात होगा, उसी क्षण जीवन-कल्प की संभावना मुखर हो पड़ेगी। ___ जीवन-कल्प काया कल्प से बहुत ऊपर की स्थिति है। काय-शुद्धि, वचन-शुद्धि और मनःशुद्धि का नाम ही जीवन-कल्प है। आत्म-शुद्धि जीवन-कल्प का ही शब्दान्तर है।
वह व्यक्ति जीवन-कल्प से कोसों दूर है, जो चित्त-चांचल्य का गुणधर्मी है। चित्त के साथ बहना मुर्दापन है। जीवन्तता बहने में नहीं, तिरने/तैरने में है।
आदमी हमेशा चित्त के कहे में रहा, इसीलिए तो उसे युग-युग बीत जाने के बाद भी कोई मंजिल नहीं मिली। यहां मंजिलें तो सत्य के मार्ग पर सैकड़ों हैं; पर हर कदम पर मंजिल होते हुए भी एक भी मंजिल नहीं मिली है। जो भटकाव है, वह भटकाव-के-नाम पर चित्त-का खेल है। चित्त की उलटबांसी को समझेंसंसार और समाधि
-चन्द्रप्रभ
98
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org