Book Title: Sansar aur Samadhi Author(s): Chandraprabhsagar Publisher: Jityasha FoundationPage 35
________________ प्रतिपल होने वाला फर्क भी नजर पड़ेगा, रत्ती - रत्ती का हिसाब समझ में आयेगा । आप स्वयं अनुभव करेंगे कि मैं कैसा हूं, संसार कैसा है। धीरे-धीरे आप पायेंगे कि सपने टूटने लगे, सच्चाई उभरने लगी। एक राजा का बेटा बीमार था। मृत्यु - शय्या पर लेटा था। सारे वैद्य-हकीम इलाज में लगे थे। राजमाता, मंत्रीजन सब पास खड़े थे। राजा राजकुमार की बाजु में कुर्सी पर बैठा था। वह काफी चिन्तातुर भी था। बैठे-बैठे ही उसे झपकी आ गयी और उसने उसी समय एक सपना देखा। उसने देखा कि उसके सात स्वर्ण महल हैं। वह अपने बेटों को गले लगाने के लिए ज्योंहि हाथ फैलाता है, कि रानी की चीख से उसका सपना टूट जाता है। सब रोने लगे, क्योंकि बिस्तर पर लेटा राजकुमार चल बसा था। किसी की मौत होने पर उसके प्रति आंसू ही बहाये जाते हैं। रानी वगैरह छाती पीट-पीट कर रोने लगे। जब राजा को यह ज्ञात हुआ तो वह हंसने लगा। रानी ने कहा, आप हंस रहे हैं पुत्र- निधन पर यह सुनकर राजा और हंसने लगा। पत्नी/रानी बोली, आपका दिमाग तो नहीं फिर गया! कहीं पागल तो नहीं हो गये ! इस हंसी का राज क्या है? राजा बोला, बोलो, किस पर रोऊंरानी ने कहा, कौन-से सात बेटे ? क्या सपना देखा था ? -उन सात बेटों के लिए या इस एक बेटे के लिए। हां, मैंने सपना ही देखा था । रानी बोली, अरे वह तो सपना था और यह वास्तविक है। राजा ने कहा, हां वह भी एक सपना था, और यह भी एक सपना है। संसार एक सपना है। वह सोये-सोये देखा हुआ सपना था। यह जागते हुए देखा गया सपना है। दोनों ही सपने हैं । अब मेरी आंखें खुल गयी हैं सपनों से। मुझे यह कहानी बहुत प्रिय लगी। शायद आपको भी प्रिय लग जाये, तो बहुत जल्दी खुल जायेंगे संसार के रहस्यमयी दरवाजे । संसार रहस्य जरूर है, पर तभी तक जब तक प्रज्ञा की किरणों से रहस्योद्घाटन न करें। यदि एक बार प्रज्ञा के फूल खिल गये, जागृति की रोशनी मिल गई, संसार के स्वभाव की समझ पैदा हो गई, तो फिर यात्रा बाहर की न होगी, भीतर की होगी। वह बहिरात्मा न होगा, अन्तरात्मा होगा। फिर उसे स्वयं महसूस होगा कि बहर की गंगा आखिर बाहर की है। उसे प्रयाग संगम तो भीतर महसूस होगा। वह स्वयं में निहारेगा अपना तीर्थ और संसार और समाधि Jain Education International 24 For Personal & Private Use Only -चन्द्रप्रम www.jainelibrary.orgPage Navigation
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