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शुद्ध अस्तित्व का दीया उतना ही खोता चला जाएगा। यदि जानना चाहते हो तो स्वयं को, यदि उघाड़ना चाहते हो अपने आपको, तो सम्मोहन को हटाओ। 'मेरे' को कम करो। 'मैं हो रहे, मेरा नहीं। ___जिन्हें आप कहते हैं मेरा, जरा उनके रिश्ते की पावनता तो परखो। जिसे आप मेरा कहते हैं, और खुशियां मनाते हैं, उनके लिए तालियां बजाते हैं, वे ही कल गालियां देने लगते हैं। आपका 'मेरा' भी खतरे में है। आपका मेरा' भी दो कोड़ी का है। वह सपने से ज्यादा कीमती नहीं है। आपका ‘मेरा' सपने में रोता है, सपने में हंसता है। आखिर जिंदगी में भी तो इतना ही है। कुछ हंसी ख्वाब और कुछ आंसू, उम्र भर की यही कमाई है। सपने बनाते रहे और टूटे सपनों के लिए रोते रहे। इस ‘मेरे' के सम्मोहन ने हमारे हर भविष्य को बिगाड़ा है। अतीत आंसू बन रहा है और भविष्य सुन्दर सपना। हम जीते हैं दोनों के बीच।
आंसू और सपने के बीच का सेतु ही हमारा जीवन है। आखिर मौत के समय पाओगे स्वयं की जीवन यात्रा को मरुस्थल की यात्रा। यात्रा करने में काफी समय लगा, काफी थकान हुई, पर हाथ क्या लगा? रेती।
जब यहां कुछ हाथ लगने वाला नहीं है, तो आप किसको मेरा मान रहे हो? क्या मकान को मानते हो? क्या मकान आपका है? जिस घर में आप रह रहे हैं, हो सकता है उस स्थान पर पहले महल बना हो। आज आपका अपना मकान है। हो सकता है कल वहां झोंपड़ी बन जाये। परसों वही मरघट बन जाये। ये सारे महल-मकान सरायें हैं। कल कोई और ठहरा था, आज कोई और ठहरा है, कल कोई और ठहरेगा। दुनिया में कहीं एक फुट भी ऐसी जगह नहीं है, जहां अब तक कम से कम दस मुर्दे न जले हों या न गड़े हों। तब मेरा कहां, सम्मोहन कैसा?
एक राजमहल में एक फकीर पहुंचा। राजा से बोला, मुझे यहां ठहरना है। राजा ने कहा, फकीर साहब! यह राजमहल है, सराय नहीं। फकीर बोलने लगा, यह सराय ही है, राजमहल नहीं, फकीर के उत्तर से राजा चौंका। पूछा, सराय कैसे है?
फकीर ने कहा, तेरा पड़दादा कहां रहा? राजा बोला, इसी महल में। फकीर ने कहा और तेरा दादा? राजा बोला, वह भी इस महल में। फकीर बोला, और तुम? बोला, इसी महल में।
फकीर चिल्लाया, अरे, जिस महल में इतने-इतने मुसाफिर रहकर चले गये, वह सराय नहीं तो और क्या है?
संसार और समाधि
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-चन्द्रप्रभ
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