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वासना बनी, हम उसे पूर्ण करने का प्रयास करते हैं कि इतने में ही दूसरी चाह पल्ला थाम लेती है और पहली चाह धरी की धरी रह जाती है। यों मन ने तो ब्रह्मा की कार्यशैली को अपना लिया। निर्माण ही निर्माण ही करते जाओ। पैदल चलने वाला सायकिल की इच्छा लिये है, साइकिल वाला स्कूटर की, स्कूटर वाला कार की और कार वाला हवाई जहाज की इच्छा लिये है। कोई टिका नहीं है। सभी दौड़ रहे हैं। कहां दौड़ रहे हैं, इसका पता नहीं है। पर दौड़ रहे हैं। निरुद्देश्य इच्छाओं के पीछे दौड़ लगाना स्वयं की शक्ति का अपव्यय है। करवटें बदलने में सुबह शाम हो जाती है, शाम सुबह; जिंदगी आखिर यूं ही तो तमाम होती है।
जरा सोचिये, यदि भाग्य से हवाई जहाज मिल भी गया तो क्या इससे आगे की चाह नहीं होगी। चाह होती है उससे भी आगे की, राकेट पर बैठकर चन्द्रमा के सैर करने की। हम इसी संसार में यों घूमते हुए ही दिखाई देंगे। समय के पलटते भी कौनसी देर लगेगी! करोड़पति रोड़पति बन जाते हैं। राकेट वाले के लिए साइकिल भी लिखी हो सकती है। जीवन तो गाड़ी का पहिया है। ऊपर वाला हिस्सा नीचे और निचला हिस्सा ऊपर आता ही है। जिन सीढ़ियों से चढ़ा जाता है, उससे नीचे भी उतरना पड़ता है। यों आदमी गाड़ी के पहिये की तरह घूमता रहता है। __पर समझदार आदमी इस बात को समझने में अपनी समझदारी का परिचय कहां दे पाता है! लोभियों को देखो! सड़ियल जीवन जीते हैं। वे सड़े-गले फल से कौन से कम हैं! इसीलिए तो उन्हें कहा जाता है मक्खीचूस। मक्खीचूस का मतलब मक्खियों को पंह से चूसने वाला नहीं है। जो मक्खी में से भी घी निकालने की कोशिश करता है वह मक्खीचूस होता है। मक्खीचूस ठीक उस तेली की तरह होता है जो दिनभर तेल निकालने के बाद भी बिना तेल की सब्जी खाता है। ___ कहते हैं कि एक घी के डिब्बे में कहीं से मक्खी गिर गई। दुकानदार ने मरी मक्खी निकाली। उसे दो अंगुलियों की चीमटी से दबाया। मक्खी का बदन घी से भरा था। दबाने के कारण एक बूंद घी वापस डब्बे में गिरा। पास में खड़े ग्राहक ने कहा, साहब! यह क्या? अगर मक्खी के साथ एक बूंद घी चला भी जाये, तो कहां घाटा है! दुकानदार ने कहा, अरे बुद्ध ! मक्खियां तो घी के डिब्बे में गिरती ही रहती हैं, किस-किसके पीछे घी छोडूं। ___ मैने सुन रखा है कि एक आदमी बहुत बीमार पड़ गया। जीवन-बचाव के घरेलू उपचार करने पर भी जब उसके स्वास्थ्य में कोई सुधार न आया, तो उसके लड़के ने किसी संसार और समाधि
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-चन्द्रप्रभ
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