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संसार में कौन-सा. जुल्म है। बड़ा हमेशा स्वयं को बड़ा मानता है। शायद यह उसकी अहं-भूमिका हो। स्वयं चूकता रहेगा, पर अपनी चूक मानना उसने जन्म से ही नहीं सीखा, तो जीवन में क्या सीखेगा! __ कहते हैं बड़ों ने सारी दुनिया देखी है। छोटे तो दूध-मुंहे हैं। पिता जब तक जीवित रहेगा, तब तक पुत्र हमेशा छोटा ही रहेगा। छोटा है, पर छोटापन खराब नहीं है। हम भी ठहरे छोटे, पर छोटे सूक्ष्मदर्शी होते हैं, दूरदशी होते हैं। बड़े सोचते हैं एक जनम की और छोटे सोचते हैं जनम-जनम की। जरा जोड़-घटाव करो और पता लगाओ कि छोटों ने दुनिया ज्यादा देखी है या बड़ों ने। - जब बड़े लोग छोटों की 'छोटा' कहकर उपेक्षा करते हैं, तो मेरा मन पिस जाता है। एक बार एक आचार्य अपने छोटे शिष्य से कह रहे थे कि छोटे सन्त के पास महिलाओं को नहीं जाना चाहिये। मुझे वह छोटा सन्त बड़ा सुयोग्य लगा। यदि आचार्य यह कहते कि सन्तों के पास महिलाओं को नहीं जाना चाहिये, तो मुझे कोई आपत्ति नहीं थी। उनकी नमकीन दृष्टि तो जला रही थी छोटों को।
विपक्ष का काम ही यही है कि सत्तासीन व्यक्ति की कमियां दिखाओ। सोचने लगा, बड़े लोग अपनी बगल नहीं झांकते हैं। वे हमेशा छोटों को कसते हैं। बड़ा हो जाने के कारण बिचारा भूल जाता है कि वह भी कभी 'छोटा' रहा था। ___ मैंने आचार्य से कहा, आपने जो कहा, मैं उसका विरोध नहीं करूंगा, पर आप साठ वर्ष के हैं और आप जिसे कह रहे हैं, वह भी पचास वर्ष की है। पर क्या आपको विश्वास है कि आपकी गंगा हमेशा उजली रहेगी? आपको अपने बारे में पूरी गांरटी है? कहने लगे, तुम्हारा मतलब? मैंने कहा, साधुता उम्र में नहीं, जिन्दगी में होती है। जिसकी जिन्दगी में साधुता है, वह बीस वर्ष का हो, तो भी कोई खतरा नहीं है और जिसकी जिन्दगी में साधुता नहीं है, वह साठ-सत्तर वर्ष का होकर भी खतरे में है।
बताते हैं कि शुकदेव और उनके पिता दोनों ही पहुंचे हुए महर्षि थे। मगर दुनिया की निगाहों में दोनों में फर्क था। शुकदेव अपने गांव के तालाब के पास से गुजरे। महिलाएं वहां नहा रही थीं। उन्होंने शुकदेव को देखा। शुकदेव उधर से गुजर गये। कुछ ही दूरी पर आ रहे शुकदेव के पिता भी उसी तलाब के पास से गुजरे। महिलाओं ने अपने को छिपाने की कोशिश की। अपनी-अपनी साड़ियां ओढ़ने लगीं।
संसार और समाधि
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--चन्द्रप्रभ
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