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बेटा बोला, मां! मैं पिता को जाने नहीं दूंगा। मैं उनके पैर बांध कर उन्हें रख लूंगा। बेटे ने मां का काता हुआ कच्चा सूत उठाया और अपने सोये हुए पिता के पैरों के चोरों ओर लपेट दिया। बेटे के मुलायम स्पर्श से आर्द्रक जग पड़ा। उसके कोमल स्पर्श ने, उसकी मुस्कुराहट ने आर्द्रक को उन्मना बना दिया। गिना, बारह लपेटे थे। आईक उस बन्धन को तोड़ न सका। जो पांव अगले दिन संन्यास की पगडंडी पर बढ़ने वाले थे, वे वापस संसार में लौट आये।
बारह वर्ष बीतने पर आर्द्रक ने मुनि-जीवन स्वीकार कर लिया। साधु बना आर्द्रक रास्ते से गुजर रहा था। एक हाथी जंजीरों से बंधा था। किन्तु आर्द्रक को देखते ही बंधन को तोड़कर उसी की ओर दौड़ा। लोग चिल्लाने लगे। पर आश्चर्य! आर्द्रक घबराया नहीं। हाथी उसके पास आकर नमा, और जंगल की तरफ चला गया।
जिन तापसों का वह हाथी था, वे तापस बड़े हतप्रभ हुए। आईक के पास आये। पछा, उस हाथी ने तम्हें देखकर अपनी लौह-जंजीरों को कैसे तोड दिया? आर्द्रक बोले. लोहे की जंजीरों को तोड़ना सरल है, किन्तु कच्चे सूत के बन्धन को तोड़ना कठिन है। उसने अपनी आप बीती सुनाई और कहा, हम सब मुक्त है। चिरकाल से ही मुक्त है। हम बन्धन में तभी हैं, जब स्वयं को बंधन से बंधा मानते हैं। व्यक्ति हर किसी से बंधन-मुक्त है, किन्तु सम्मोहन, राग, आसक्ति, मूर्छा को लिये बंधा है। जिस दिन भीतर के रग-रग में यह अनुभव होगा कि में बन्धन मुक्त हूं, उसी दिन मुक्त हो जाओगे।
सम्मोहन एक बंधनं है। किन्तु यह लोहे की जंजीरों जैसा बंधन नहीं है। यह कच्चे सूत का बंधन है। फर्क यही है कि जंजीरों को तोड़ना उतना कठिन नहीं है, जितना सूत को तोड़ना।
सम्मोहन आकर्षण है, राग है, ममत्व है, मूर्छा है, आसक्ति है, बेहोशी है। किसी चीज से लुभा जाना, किसी के साथ ममत्व के कच्चे सूते से बंधना, मेरेपन का भाव बांधना, यही सम्मोहन है, यही राग है। सम्मोहन किसी विशेष भाव से, किसी विशेष व्यक्ति से, किसी विशेष वस्तु से जुड़ना है। कहा, मेरा मकान, तो जुड़ गये। मकान में रहना बुरा नहीं है। मकान में रहने में कोई आपत्ति नहीं है। मकान के साथ मेरा मत जोड़ना। 'मेरे' में अड़चन है। मकान में रहने से व्यक्ति नहीं जुड़ता। रहता तो होटल में भी है, पर उसे अपनी नहीं समझता। किराये को समझता है, परायी मानता है। अड़चन है 'मेरे' में। इसका मतलब यह नहीं कि मैं कहता हूं, मकान में मत रहना। मकान में खूब रहो। दोनों के बीच में
संसार और समाधि
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-चन्द्रप्रभ
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