Book Title: Sansar aur Samadhi Author(s): Chandraprabhsagar Publisher: Jityasha FoundationPage 39
________________ बाना है। पर जिस स्त्री की जैसी सम्मोहित दशा होती है उसके लिए वैसा ही रंग रसीला होता है। यदि कोई स्त्री ज्यादा गुस्से वाली है तो उसे लाल रंग ज्यादा सुहाता है, यदि कोई खट्टे-मीठे स्वभाव वाली है तो उसे संतरे के रंग की साड़ी सुहाती है। नम्र स्वभाव वाली स्त्री को पीली और गुलाबी साड़ी में मजा आता है। पर इसका मतलब यह नहीं है कि जो औरतें काली साडी पहिनती हैं वे भी भीतर से काली हैं। उनकी साड़ी का काला रंग तो उनकी पसंद नहीं, अपुति समाज के ढरों की पसंद है। इस युवक को कहिये कि जरा एक दिन के लिए पेन्ट-शर्ट मत पहनो, धोती पहन लो। यह कभी पहन पाएगा? नहीं। कहेगा यह भी कोई पहनावा है! ढ़ीली-ढ़ीली धोती, ढीला-ढाला कुरता और ढीली-ढाली चाल यह तो ढीले-ढाले लोगों के लिए है। हम जैसे चस्त लोगों के लिए नहीं है। उन पगड़ी वाले सज्जन को कहिए कि जरा एक दिन के लिए आप धोती-कुर्ता मत पहनो, पेन्ट-शर्ट पहन लो। क्या ये कभी पहिनेंगे? कहकर देख लो, कैसा जवाब मिलता है। अपनी पगड़ी से आपकी टांगों को बांधकर आपका सारा दिमाग दूह लेंगे, पर पेन्ट कमीज नहीं पहिनेंगे। कहेंगे यह भी कोई पहनावा है? चुस्त पेन्ट पतली टांगें, लगती हैं सिगरेट जैसी। ___ मैं यह कहना चाहता हूं कि आप जरा सोचिये कि पहनावे में यह फर्कक्यों ? क्योंकि सम्मोहन है, राग का रिश्ता है। एक पेन्ट के प्रति सम्मोहित है तो दूसरा धोती के प्रति तो तीसरा लूंगी के प्रति। कपड़े तो तीनों ही हैं, पर सम्मोहन-दशा सबकी अलग-अलग है। ____ हर इंसान के अपने-अपने शौक हुआ करते हैं। शौक और कुछ नहीं, अपने सम्मोहन की अभिव्यक्ति मात्र है। किसी को क्रिकेट का शौक तो किसी को फुटबॉल का। किसी को खेलने में मजा आता है तो किसी को खेल देखने में। आखिर ऐसा क्यों? मेरी समझ से तो इस क्यो का एकमात्र जवाब है सम्मोहन। __बहुत बार ऐसा भी देखता हूं कि लोग रास्ते पर चलते-चलते ही गीत गुनगुनाने लगते हैं। अब उन्हें कौन समझाये? सड़क कोई महफिल खाना नहीं है। यह व्यक्ति को आगे से आगे सरकाती है इसलिए सड़क है। चलते-चलते बेमतलब कुछ गुनगुनाते रहना एक तरह का हल्का-फुल्का पागलपन है। मम्मोहन वास्तव में पागलपन ही है। होश कहां रहता है सम्मोहन में। बेहोशी का दूसरा नाम ही सम्मोहन है। होश जागा कि सम्मोहन टूटा। बोध की किरण फूटी कि सम्मोहन का अंधेरा मिटा। सच्चाई की आंख खुली कि तन्द्रा हटी। यही तो वह दीवार है, यही तो वह आंख की पट्टी है, जो व्यक्ति को सच्चाई की झलक नहीं पाने देती। संसार और समाधि 28 -चन्द्रप्रभ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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