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जाना नहीं, वह तो सच्चा और जिसे गहराई से जाना है, वह झूठा। मेरी समझ से तो जैसे ब्रह्म सच्चा है, वैसे ही यह संसार भी सच्चा है। गहराई से सोचता हूं तो लगता है कि संसार से बड़ा सत्य यहां और कोई नहीं है। संसार की न शुरुआत है न समापन। यह अनादि है
और अनन्त है। ___ यदि कोई यह कहता है कि यह परी-सी सुन्दर सृष्टि परमात्मा की बनाई हुई है, तो जैसा स्रष्टा है, वैसी ही उसकी सृष्टि है। जब स्रष्टा अनश्वर है, तो उसका सर्जन नश्वर कैसे!
संसार यथार्थ है।यह न माया है न मिथ्या। इसलिए यह भ्रम भी नहीं है। निःसंदेह यह संदेहों से परे है। इसलिए यहां शाश्वतता के स्वर गूंजते हैं। यदि क्षणभंगुर होता, तो शाश्वतता के गीत न तो कभी बोले जाते और न ही सुने जाते। क्या क्षणभंगुर लिख सकते हैं शाश्वतता का इतिहास? यदि लेखक शाश्वत नहीं है, तो लेखन भी नहीं है, लेखन का विषय भी नहीं है। इस तरह झुठला जाएंगे वेद, आगम, पिटक।
संसार पराया नहीं है। यह जीवमात्र का घर है, मंदिर है, आराध्य है। यह भगवान का भी घर है और इंसान का भी।
संसार शाश्वत है। जैसे सत्य और शिव शाश्वत है, वैसे ही संसार भी है। काल के पंजे इसे झपट नहीं पाते। सत्य को किसी तरह की आंच नहीं आती, परमात्मा की मौत नहीं होती और संसार कभी भंगुर नहीं होता। संसार कल भी था, आज भी है और कल भी रहेगा। सर्जन और विसर्जन के पहले भी था और पीछे भी रहेगा। चाहे एक बार ही क्यों, हजारोंहजारों बार प्रलय क्यों न हो जाये, पर संसार का अस्तित्व हर प्रलय के बाद बना रहेगा। पहले जब प्रलय हुआ था, उससे पहले भी पेड़, पौधे, पहाड़ वगैरह थे, उसके बाद भी हैं। मूल सत्ता के रूप में सब कुछ शाश्वत है। जो परिवर्तन दिखाई देता है, वह चोलों का है, मौसम का है, गिरगिटिये रंगों का है। - कहा जाता है संसार क्षणभंगुर है, सपना है, असत्य है। यह हमारे देश की आम भाषा है। भारत में सत्य उसे कहा जाता है, जो शाश्वत है। क्षणभंगुर को सत्य नहीं कहा जाता है। उसे सपना कहा जाता है। सपने का मतलब है, जो पहले नहीं था, अभी है और भविष्य में नहीं रहेगा। सत्य वह है जो अभी है, पहले भी था, और भविष्य में भी रहेगा। सपना तो लहर है आया और चला गया। सत्य सागर है, जो सपनों की हर लहर में रहता है। संसार के सपनीले रुप तो खूब कहे गये है। हमें समझने चाहिये उसके सागर जैसे रूप को भी। पर यह तब समझेंगे, जब उसके प्रति घृणा की नहीं, प्यार की दृष्टि अपनायेंगे। संसार और समाधि
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-चन्द्रप्रभ
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