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जिसे हमने जोड़ समझ रखा है, जरा सोचें कि वह जोड़ बलात् है या सही। अगर समझ पैदा हो गयी हो तो जोड़ में से आप स्वयं को घटा लें, हटा लें। सत्य तो यह है कि समझ आ जाने के बाद संसार कहां? 'ज्ञाते तत्त्वे कः संसारः ?' तत्त्व - ज्ञान होने पर संसार कहां? प्रकाश आ जाने के बाद अंधकार कहां? अमरत्व के बाद मृत्यु कहां?
जोड़ वास्तव में मिलावट है, मिश्रण है। दुनिया के सारे मिश्रण जबरदस्ती हैं, स्वाभाविक नहीं। जहां-जहां जोड़ है, मिश्रण है, वहां-वहां उलझन है, अशुद्धि है। दूध और पानी का मिश्रण करके देख लो। परिणाम सामने आ जायेगा । यों तो दूध भी शुद्ध और पानी भी शुद्ध, पर दो शुद्धताओं का मिलाप अशुद्धता को जन्म देता है। अशुद्धि तब होती है, जब दो भिन्न-भिन्न जाति के पदार्थ एक-दूसरे में मिल जाते है। वर्ण- शंकर का दूसरा नाम अशुद्धि है। दाल और चावल अलग-अलग पकाये जायें, तो पकने के बाद भी हम दाल को दाल कहेंगे और चावल को चाबल । पर दोनों को साथ पका लो, तो? तो हम उसे खिचड़ी कहेंगे । इसीलिए तो कबीर की भाषा को हम खिचड़ी भाषा कहते हैं, - क्योंकि उसमें कई भाषाओं का मेल है।
हमारी जिंदगी भी खिचड़ी बन गई है । उसमें ढेर सारे विजातीय एक दूसरे से रिश्ता जोड़े हैं, घुले-मिले हैं। आत्मा मन में घुली । मन शरीर में घुला है। शरीर बाहरी रंग-राग में, संसार में। सब एक-दूसरे से घुले-मिले, भिंदे-छिदे हैं। यह इन्द्रधनुषी संसार उसके लिए तब तक सुखकर और दुःखकर बना रहेगा, जब तक एक-दूसरे से छिदना और जुड़ना चालू रहेगा।
इसलिए यह बहुरूपिया संसार छलना है, धोखा है। यहां सब एक-दूसरे को ठगते चले जाते हैं। यहां केवल बदमाश ही ठग नहीं है, अपितु पिता भी ठग है, बेटा भी ठग है, पत्नी भी ठग है। मित्र भी ठग है। संसार ठगबाजी की एक शतरंज है। और इस दृष्टिकोण से संसार दुःखदायी है, आंखमिचौनी है, चंचल लहरों की तरह है।
कुछ दिन पहले मैने एक कहानी पढ़ी थी कि एक महिला को ऋण चुकाने के लिए पांच सौ रुपये की जरूरत थी। जमींदार ने धमकी दे दी कि यदि कल तक रुपये नहीं लौटाये तो तुम्हारी खैर नहीं। और कोई उपाय न देख उसने अपनी भैंस बेचने की ठानी। उसने अपने लड़के से कहा, जा इस भैंस को बाजार में पांच सौ रुपये में बेच आ। लड़का बाजार गया। वह जोर-जोर से पुकारने लगा, अरे भैंस ले लो भैंस, पांच सौ रुपये में भैंस ले लो भैंस ।
उसी समय वहां चार ठग पहुंचे। उन्होंने उसे बच्चा जान ठगने की चेष्ठा की। एक ठग उसके पास पहुंचकर बोला, अरे बुद्ध हो क्या? बकरी को भैंस कहते हो । अरे यह तो बकरी
संसार और समाधि
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- चन्द्रप्रभ
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