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इसलिए संसार घृणा करने जैसा नहीं है, प्यार करने जैसा है। क्योंकि यह स्थायी निधि है। जब हम नहीं रहेंगे, तब भी यह निधि रहेगी। महावीर और बुद्ध के मोक्ष के पहले भी संसार था और बाद में भी बना हुआ है। किसी के रहने या न रहने से संसार में कोई फर्क नहीं पड़ता। भला, संसार कभी मिटता है! यहां कितने ही जन्मते हैं और कितने ही मर जाते हैं। मगर संसार को ध्रुवता को हथोड़े से तोड़ना सम्भव नहीं है।
पर इसका मतलब यह नहीं है कि संसार कभी क्षणभंगुर नहीं हुआ करता। संसार की ध्रुवता का पक्ष तो समझा। अब समझें उसकी अध्रुवता-भंगुरता के पक्ष को।
संसार क्षणभंगुर है-यों कहना बोलती जिन्दगी की एक लहर है। क्षणभंगुर तो वह संसार है, जिसकी सृष्टि हमने की है, जिसे हमारे मन ने रचा है, जिसे हमारी कल्पनाओं ने बनाया बसाया है, जिसे हमारे मोह ने जनमाया है। मां, बाप, बहू, बेटे, दोस्त, दुश्मनइनकी परिधि में बना - बसा संसार क्षणभंगुर है। यहां पर पाला-पोसा गया प्रेम टिकाऊ नहीं है। हम संसार की शाश्वतता पर मोह, राग, और वैर के जो पर्दे लगा देते हैं, जो झिल्लियां चढ़ा लेते हैं, वे ही वास्तव में नश्वर हैं। चूंकि हमारा मन हर समय उथलपुथल मचाता है, उटपटांग बातें बनाता है, जिससे जंच गयी, उसी से सांठगांठ कर लेता है। इसीलिए हमारे लिए यह संसार चपल, चंचल, अस्थिर और क्षणभंगुर बना हुआ है।
संसार एक गिरगिट है। रंग और रुप का परिवर्तन उसकी बपौती है। वह चाहे जितने अपने रंग और रूप बदल ले, पर फिर भी अभंगुर है। आकाश में कितने बादल उभरते हैं, इन्द्रधनुष बनते हैं, चांद उगता है, सूरज डूबता है, तारे टिमटिमाते हैं ! कुदरत की इस सारी रास लीला में आकाश तो ज्यों-का-त्यों ही बना रहता है। जो आकाश दिन में उजला और नीला है, वही रात में काला हो जाता है। रंगों के इस फेर-बदल में आकाश कहीं गायब नहीं होता। इसलिए संसार की क्षणभंगुरता और शाश्वतता खासकर टिकी है हमारी मनोदृष्टि पर। ___ मैं कभी संसार की निन्दा नहीं करता। भला, जो चीज शाश्वत है, उसकी निन्दा की भी कैसे जा सकती है। संसार का महत्त्व ईश्वर, तीर्थंकर और बुद्ध से कम नहीं है। संसार न रहेगा, तो ईश्वर को कौन पूछेगा, कौन पूजेगा? बिना संसार का ईश्वर अपूज्य है। बिना संसार का ईश्वर अकेला है। और उपनिषदों की भाषा में अकेलापन उसे सुहाता नहीं है। इसीलिए तो उसने स्वयं को बांट-बिखेरा। ये मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे वास्तव में भगवान् के निवासस्थान नहीं है, अपितु हमारी श्रद्धा का प्रगट रूपान्तरण है। मंदिर का निर्माण
संसार और समाधि
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-चन्द्रप्रभ
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