________________
ऐसा है संसार
संसार को रहस्यमय माना जाता है। यह उन लोगों के लिए रहस्यमय है, जो खुली हथेली आए हैं, पर मुट्ठी बांधकर पूरा जीवन बिताते हैं। एक जागरुक व्यक्ति के लिए यह संसार एक खुली हुई किताब है। चूंकि किताब है, इसलिए एक ही अध्याय नहीं है। कई
अध्यायों की जिल्द का नाम किताब है। जो संसार को उलझन मानते है, उन्होंने संसार की किताब पूरी नहीं पढ़ी है। संसार की किताब को स्वाध्याय-श्रृंखला की पहली कड़ी बनाइये और उसे गहराई से पढ़िये। __ कहा जाता है संसार कीचड़ है। इसका रहस्य जानना चाहिये कि यह कीचड़ कैसे है। संसार केवल कीचड़ ही नहीं है, कमल भी है। इसकी एक आंख में प्रेमिका की सूरत है तो दूसरी आंख में मां की ममतामयी मूरत है। इसमें लहरों-सी चंचलता भी है, तो समाधिसी शान्ति भी। यहां भीड़ भी है, तो एकाकीपन भी है। बाजार भी है, तो गुफा भी। संसार अनेक विचित्रताओं को समेटे है। ____ नरक, पशु-पेड़, स्वर्ग और मनुष्य-ये सब संसार के ही अंग हैं। मुक्ति संसार में कमल की तरह है। वह संसार के उस छोर पर है, जो आखिरी है। जीव वहां तक संसरण तो करता है, किन्तु वहां से नीचे की ओर संसरण नहीं करता। नरक संसार के इस छोर की आखिरी कडी है। इसलिए सारे जीव संसार में ही हैं। जहां-जहां अवकाश है, वहां-वहां संसार की सम्भावना है। अवकाश आकाश का ही नाम है। इसलिए संसार को दूसरा नाम लोकाकाश भी दिया जा सकता है।
आप जिस संसार को देख रहे हैं, वह तो है ही संसार। इस दृश्यमान संसार के परे भी संसार है। वह संसार रहस्यमय ज्यादा है। नरक भी एक संसार है। स्वर्ग भी एक संसार है। जो लोग इन्हें संसार कहना पसंद नहीं करते, वे उन्हें लोक कह देते हैं।
कहा जाता है- ब्रह्म सत्यं, जगत् मिथ्या। यानी ब्रह्म सच्चा है और संसार झूठा। यह बात विचारने जैसी है। मुझे तो लगता है कि यह भक्ति का अतिरेक है। जिसे देखा नहीं,
संसार और समाधि
15
-चन्द्रप्रभ
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org