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खण्ड-४, गाथा-१
पूर्वोत्तरकालभाविनां सर्वप्रमाणानां तदा नित्याभिमतं जनकमात्मादिकं कारणमिति कथं न तदैव सकलतदुत्पाद्यप्रमाणोत्पत्तिप्रसक्तिः ? अथ आत्मादिके सत्यपि तदा तानि न भवन्ति न तर्हि तत् तत्कारणम् नापि तानि तत्कार्याणीति सकृदपि तानि ततो न भवेयुरिति सकलं जगत् प्रमाणविकलमापद्येत । न च, आत्मादिके तत्करणसमर्थे सत्यपि स्वयमेव यथाकालं तानि भवन्ति - इति वक्तव्यम् तेषां तत्कार्यताऽभावप्रसक्तेः । तस्मिन् सत्यपि तदाऽभावात् स्वयमेवान्यदा च भावात्। न च स्वकालेऽपि कारणे सत्येव भवन्तीति 5 तत्कार्यता, गगनादिकार्यताप्रसक्तेः - गगनादावपि सत्येव तेषां भावात्। न च गगनादेरपि तत् प्रति कारणत्वस्येष्टेयिं दोषः, प्रमितिलक्षणस्य तत्फलस्यापि व्योमादिजन्यतया आत्माऽनात्मविभागाभावप्रसक्तेः । में उस समय में भी अक्षुण्ण है। देखिये - जिस काल में जिस का उत्पाद उपस्थित रहेगा उस काल में उस की उत्पत्ति होती है, उदा० तत्कालीन प्रमाण का कारण (साकल्य) उस काल में संनिहित रहने पर उस प्रमाण की उत्पत्ति उस काल में होती है। वैसे ही, पूर्वोत्तरकाल में (क्रमशः) उत्पन्न माने 10 जानेवाले सभी प्रमाणों का उत्पादक आत्मादि कारण, जो कि नित्य माने गये हैं, जब जिस वक्त मौजूद है तब क्रमिकता को छोड कर वे सब प्रमाण जो कि उन से उत्पन्न होने वाले हैं, एक साथ क्यों उत्पन्न नहीं होंगे ? नित्य आत्मादि के संनिहित होते हुए भी वे सभी प्रमाण उत्पन्न नहीं होते हैं तो मानना पडेगा कि नित्य आत्मादि उन के उत्पादक नहीं है, वे प्रमाण भी उन आत्मादि के कार्यभूत नहीं है। फलतः, नित्य आत्मादि से एक बार भी एक भी प्रमाण की उत्पत्ति न होने से सारा जगत् 15 प्रमाणशून्य बन जायेगा।
* नित्य कारणों से क्रमिक कार्योत्पत्ति दुर्घट * आशंका :- नित्य आत्मादि कारण प्रमाणोत्पादन के लिये समर्थ ही है, फिर भी कार्यभूत प्रमाणों का स्वभाव ही ऐसा है कि वे पूर्वोत्तर क्रम से ही उत्पन्न होते हैं, एकसाथ नहीं। ___ उत्तर :- ऐसा मानना अयुक्त है, क्योंकि कारण के संनिहित रहने पर भी जब वे प्रमाण एक 20 साथ उत्पन्न नहीं होते हैं तब अन्वय व्यभिचार दोष के जरिये उन प्रमाणों में नित्यआत्मादि के कार्यत्व का अभाव ही प्रसक्त होगा, क्योंकि कारणभूत आत्मादि के होने पर भी विवक्षित काल में वे कार्य नहीं होते और किसी भी काल में स्वयमेव अपनी मर्जी से उत्पन्न हो जाते हैं।
आशंका :- अपनी मर्जी से नहीं उत्पन्न होते, जब कभी उत्पन्न होते हैं तब नित्य आत्मादि के संनिहित रहते हुए ही उत्पन्न होते हैं, अत एव उन में आत्मादिजन्यत्व का अभाव नहीं होगा। 25
उत्तर :- यह कहना गलत है, क्योंकि अब गगनादिजन्यत्व भी प्रमाणों में प्रसक्त होगा। कारण यह कि नित्य गगनादि के संनिहित रहने पर ही उन प्रमाणों का जन्म होता है। यदि कहें कि - 'गगनादि को भी उन प्रमाणों के कारण मान लेते हैं, इष्टापत्ति है, कोई दोष नहीं।' – तो यह भी असंगत है, क्योंकि इस तरह प्रमाणफलभूत प्रमिति भी गगनादिजन्य ही मान लेना होगा, इस स्थिति में आत्मादि को कारण कहो या गगनादि को, कुछ भेद न होने से आत्मादि और गगनादि 30 का भेद, यानी आत्मा-अनात्मा का भेद ही लुप्त हो जायेगा।
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