Book Title: Sanmati Tark Prakaran Part 04
Author(s): Abhaydevsuri
Publisher: Divya Darshan Trust

View full book text
Previous | Next

Page 521
________________ ५०२ सन्मतितर्कप्रकरण-काण्ड-२ ___(व्याख्या) यद्यप्ययं पूर्वमेव द्रव्य-पर्याययोर्भेदाभेदैकान्तपक्षप्रतिषेधलक्षणोऽर्थः प्रयुक्तो = योजितः "उप्पाय-द्विइ-भंगा' (प्र.काण्ड-गा.१२) इत्यादिना अनेकान्तव्यवस्थापनात्, तथापि केवलज्ञाने अनेकान्तात्मकैकरूपप्रसाधकस्य हेतोः साध्येनानुगमप्रदर्शकप्रमाणविषयमुदाहरणमिदमुत्तरगाथया वक्ष्ये ।।३९ ।। तदेवाह(मूलम्) जह कोइ सट्ठिवरिसो तीसइवरिसो णराहिवो जाओ। उभयत्थ जायसद्दो वरिसविभागं विसेसेइ ।।४।। (व्याख्या) यथा कश्चित् पुरुषः षष्टिवर्षः सर्वायुष्कमाश्रित्य त्रिंशद्वर्षः सन् नराधिपो जातः उभयत्र = मनुष्ये राजनि च जातशब्दोऽयं प्रयुक्तो वर्षविभागमेवाऽस्य दर्शयति । षष्टिवर्षायुष्कस्य पुरुषसामान्यस्य नराधिपपर्यायोऽयं जातः अभेदाध्यासितभेदात्मकत्वात् पर्यायस्य नराधिपपर्यायात्मकत्वेन चायं पुरुषः पुनर्जातो 10 भेदानुषक्ताभेदात्मकत्वात् सामान्यस्य। एकान्तभेदेऽभेदे वा तयोरभावप्रसङ्गान्निराश्रयस्य पर्यायप्रादुर्भावस्य ____ गाथार्थ :- एकान्तपक्षनिषेधसूचक अर्थ तो पहले दिखा दिया है, तथापि हेतु की संघटना-दर्शक उदाहरण हम दिखाते हैं।।३९ ।। ___व्याख्यार्थ :- सूत्रकार का अभिप्राय है कि – हांलाकि द्रव्य और पर्याय के एकान्त भेद या एकान्त अभेद पक्ष का निरसन तो पहले प्रथमकाण्ड की उप्पाय-ट्ठिइ-भंगा...(गा.१२) से द्रव्यलक्षणव्याख्यान 15 में कर दिया गया है। फिर भी केवलज्ञान में अनेकान्तात्मकैकरूपता साध्य के साधक उदाहरण उत्तर गाथा में कहेंगे ।।४० ।। यही अब कहते हैं - [ अनेकान्त का उदाहरण पुरुष जो राजा बना ] गाथार्थ :- जैसे कोइ साठ साल का पुरुष तीस साल से राजा बना। यहाँ (गाथा में) दोनों जगह 'जात' शब्दप्रयोग वर्षविभाग सूचित करता है।।४०।। 20 व्याख्यार्थ :- ‘जैसे कोईपुरुष समुचे आयुष से साठ साल का हुआ। तीस साल की आयु में राजा बना।' इस प्रकार के वाक्यप्रयोग में मनुष्यपर्याय और राजापर्याय दोनों जगह 'जात' (हुआ) ऐसे शब्दप्रयोग से भिन्न भिन्न वर्षसमुदाय प्रदर्शित होता है। (फिर भी दोनों जगह एक ही पुरुष का अभेद है। यहाँ गहराई से सोचा जाय तो पता चलेगा कि साठ (६०) साल के सामान्य परुष को ‘राजा बने ३० साल हुए' ऐसा जब निर्देश होता है तब साठ साल के पुरुष द्रव्य से अभिन्न 25 राजपुरुष का तीस साल का पर्याय दिखा कर दर्शाया जाता है कि यह राज्यपर्याय सामान्यपुरुष के अभेद से अध्यासित राजपुरुष में ३० साल का भेद दिखा कर राज्यपर्याय का सूचन करता है। उस से यह भी निर्दिष्ट होता है कि ६० साल वाला वही ३० साल पहले राजा-पर्यायरूप से पुनर्जन्म को प्राप्त करनेवाला है। यहाँ ३० साल के राज्यपर्याय से भेद का सूचन करने के साथ ६० साल के पुरुष से पुनः अभेद स्थापित किया जाता है। मतलब, अभेदानुषक्त भेद का पर्याय के साथ निदर्शन 30 किया जाता है एवं भेदानुषक्त अभेद का पुरुष द्रव्य के साथ निर्देश किया जाता है। यदि इस तरह 4. दव्वं पज्जवविउयं दव्वविउत्ता य पज्जवा णत्थि। उप्पाय-ट्ठिइ-भंगा हंदि दवियलक्खणमेयं ।। प्रथम का-गाथा १२ ।। सम्पूर्णा गाथा।। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534