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सन्मतितर्कप्रकरण-काण्ड-२ स्वभावभेदोपलब्धेः। एतेन तुलादेर्नमनाद् उन्नामाद्यनुमानं चिन्तितम् । ‘परभागवान् इन्दुः अर्वाग्भागवत्त्वाद् घटादिवद' इत्यत्रापि न तादात्म्यं तदुत्पत्तिर्वा पराभ्यपगमेन संभवति ऊर्ध्वभागवतामधोभागवतां च परमाणूनां स्वभावभेदात् सहभावाच्च ।
एकसामग्र्यधीनताकल्पनायां रूपादे रसादेरिवानुमानं कारणात् कार्यानुमानं प्रसक्तम्। तथाहि - 5 समानकालभाविनो रूपादेर्यद् रसतोऽनुमानं तत् कारणात् रूपजनकादनुमितादनुमानम् । न च समानकालभावि
रूपजनकत्वानुमानं रसहेतोरेतद् इति हेतुधर्मानुमानम्, कारणात् कार्यानुमानेऽप्येवं दोषाभावात्। न चात्रैवं लोकप्रतीत्यभावदोषः, हेतुधर्मानुमानेऽपि लोकप्रतीतेरभावात् । तथाहि- तथाविधरसोपलम्भात् तत्समानकालं तथाविधं रूपम् अर्वाग्भागदर्शनाच्च परभागं लोकः प्रतिपद्यते न पुनर्विशिष्टं कारणम्। अथाऽप्रतिबद्धादे
है। इसी विवेचन से, तुला के एक पल्ले के नमन से दूसरे के उन्नमन का अनुमान भी सुविचारित 10 हो जाता है। (यहाँ भी स्वभाव या कार्य हेतु नहीं है - समकालीन एवं विभिन्न हैं।) तथा 'चन्द्र
पृष्ठभाग युक्त है क्योंकि अग्रभागयुक्त है जैसे घटादि' इस अनुमान में बौद्धमत में तो न तादात्म्य है न तदत्पत्ति। कारण. ऊर्ध्वभाग (या पृष्ठभाग) एवं अधोभाग (अथवा अग्रभाग) के परमाणु भिन्न स्वभावी है फिर भी सहभावी हैं।
[एक सामग्र्यधीनता की कल्पना से कार्यानुमानप्रसङ्ग ] 15 शंका :- तुला नमन-उन्नमन, पृष्ठभाग-अग्रभाग इत्यादि में तादात्म्यादि नहीं है किन्तु एकसामग्रीअधीनतारूप
प्रतिबन्ध की कल्पना कर सकते हैं। एक पल्ले में भाररूप सामग्री से ही भिन्न पल्ले के नमन उन्नमन होते हैं- और एक ही पूर्वक्षण की स्वलक्षणपुञ्ज सामग्री से पृष्ठभाग-अग्रभाग बनते हैं। इस प्रकार तल्यसामग्रीजन्यत्वरूप प्रतिबन्ध के आलम्बन से. एक से दूसरे का अनमान हो सकेगा।
उत्तर :- अरे ! यह तो रूपादि से रस के अनुमान की तरह कारण से कार्य का अनुमान प्रसक्त 20 हुआ जो स्वभावादि तीन से तो अतिरिक्त है और बौद्ध को मान्य नहीं है। देखिये - यह जो समानकाल
भावी रूपादि का रस से अनुमान होता है वह रूप रस कार्य से अनुमित जो रूप कारण, उस कारण से रसादि कार्य का अनुमान है। यदि कहें कि – 'वास्तव में तो यह रस के हेतु (स्वलक्षणादि) में रूपजनकत्व का अनुमान है, मतलब कि रसहेतु यानी रसकारण के धर्म (रूपजनकत्व) का यह
अनुमान है।' - अगर ऐसा कहने में कोई दोष नहीं है तो उक्त प्रकार से अनुमित रूप कारण से 25 तथाविध रूप कार्य का अनुमान माने तो भी क्या दोष है ? यदि कहें कि - 'ऐसी लोकप्रतीति
नहीं है कि रूप कारण से रूप कार्य का अनुमान होता है।' - अच्छा ! तो ऐसी भी लोकप्रतीति कहाँ है कि उक्त हेतु धर्म का अनुमान होता है ? देखिये - तथास्वरूप रस के उपलम्भ से तत्समानकालीन रूप की लोगों को प्रतीति होती है। अग्रभाग के दर्शन से पृष्ठभाग का अनुमान होता है। किन्तु
दोनों स्थल में किसी कारणविशेष का बोध तो लोकप्रतीत नहीं है। 30 शंका :- प्रतिबन्ध के बिना एक (रसादि) से अन्य (रूपादि की प्रतीति यदि होगी तो हिमाचल
से विन्ध्याचल की भी प्रतीति होने का अतिप्रसंग हो सकता है अतः कारण की भी प्रतीति मान लेना चाहिये।
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