________________
१००
सन्मतितर्कप्रकरण-काण्ड-२
लिङ्गप्रभवादनुमानात् सौगतस्य स्वमतसिद्धिः, परस्यापि तथाभूतात् कार्याद्यनुमानाद् ईश्वराद्यभिमतसाध्यसिद्धिप्रसक्तेः । न च ज्ञानत्व-स्वत: प्रकाशनयोः साध्य-साधनयोः कुतश्चित् प्रमाणाद् व्याप्तिसिद्धिः पारमार्थिकी, ज्ञानवज्जडस्यापि परतो ग्रहणसिद्धेहेतोरनैकान्तिकत्वप्रसक्तेः । जडस्य प्रकाशाऽयोगोऽप्यप्रति
पन्नस्य प्रतिपत्तुमशक्यः, शक्यत्वे वा सन्तानान्तरस्यापि स्वप्रकाशाऽयोग: प्रतिपत्तव्यः इति तस्याप्यभावः 5 प्रसक्तः। तथा च परप्रतिपादनार्थं प्रकृतहेतूपन्यासो व्यर्थः।
अथ प्रतिपन्नस्य जडस्य प्रकाशाऽयोगः, तथापि विरोध:- 'जडः प्रतीयते प्रकाशायोगश्च' इति । अथाऽदृश्येऽपि जडे विचारात्तदयोग: प्रतीयते; ननु जडस्य तेनाप्यविषयीकरणे पूर्ववदोष:- 'विचारस्तत्र न प्रवर्तते तत एव च प्रकाशाऽयोगप्रतिपत्तिः' इति। विषयीकरणे विचारवत् प्रत्यक्षादिनापि तस्य
विषयीकरणात् प्रकाशायोगोऽसिद्धः । न च सुखादौ प्रकाशनस्य ज्ञानत्वेन व्याप्तिनिश्चयात् स्वव्यापकरहिते 10 साध्य से अव्यभिचार होना यह तो न्यायविरुद्ध ही है। यदि व्याप्ति न होने पर भी बौद्धमत में लिंगजन्य अनुमान द्वारा अपने साध्य की सिद्धि मानी जायेगी तो नैयायिकादि के मत में व्याप्ति सिद्ध न होने पर भी कार्य, आयोजन, धृति आदि हेतुक अनुमान से उन के अभिमत ईश्वरादि साध्य की (सकर्तृकत्व साध्य की) सिद्धि प्रसक्त होगी। वास्तविकता तो यह है कि स्वतः प्रकाशन हेतु में ज्ञानत्व
साध्य की पारमार्थिक व्याप्ति किसी भी प्रमाण से सिद्ध नहीं है, अपारमार्थिक व्याप्ति के द्वारा ज्ञानत्व 15 सिद्ध करेंगे तो अपारमार्थिक व्याप्ति से जड में परतो ग्रहण की सिद्धि को कौन रोक सकता है ? फलतः जड में ज्ञानत्व का अभाव सिद्ध होने पर अवभासन हेतु ज्ञानत्व साध्य का द्रोही सिद्ध होगा।
यदि कहें कि - नीलादि जड होंगे तो जड के साथ प्रकाश का मेल नहीं बैठेगा, यानी जड में प्रकाशायोग मानना होगा - तो प्रश्न यह ऊठेगा कि विज्ञानाद्वैत मत में प्रकाशायोग अगृहीत
होगा या गृहीत होगा ? आद्य विकल्प में जब तक वह अगृहीत है तब तक जड में प्रकाशअयोग 20 का प्रतिपादन अशक्य है। यदि प्रकाशायोग का ग्रहण कैसे भी शक्य मानेंगे तो अन्य सन्तान में
भी वह गृहीत होने से वह भी विज्ञानमात्रवादि मत में जड की तरह असत् साबित होगा क्योंकि जिस का स्वतः प्रकाश नहीं होता वह तो आप के मत में असत् होता है, जो सत् होता है वह स्वतः प्रकाश होने से ज्ञानाभिन्न होता है (बौद्ध मत में)। निष्कर्ष, अन्यों को मनाने के लिये प्रकाशन हेतु का उपन्यास सभी तरह से निरर्थक ठहरा ।
* गृहीत जडपदार्थ में प्रकाश अयोग अनुपपन्न * अगृहीत जड में प्रकाशयोग अशक्य है तो अब दूसरे विकल्प में उसे गृहीत कर के प्रकाश का अयोग दिखायेंगे तो भी विरोध प्रसक्त है, एक ओर वह गृहीत यानी प्रकाशित है और दूसरी ओर उस में प्रकाश का अयोग दिखाते हैं। ___यदि कहें कि – “जड को प्रकाशित न मान कर अदृश्य ही मानेंगे, उस की प्रतिपत्ति अशक्य 30 होने पर भी उस का विचार (तर्क) तो कर सकते हैं। 'जड का प्रकाश घटता है या नहीं' इस
विचार का नतीजा यही निकलता है कि जड में प्रकाश नहीं घटता।" - यहाँ विषय-अविषय के
7. दृष्टव्यम् - उदयनाचार्यविरचित न्यायकुसुमाञ्जलि- स्त०५ का०१ मध्ये ।
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org