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उल्लेसका भाव यह है fr मिलिमिनिम्म', ममनि आदि भास्मोको मापनेपाली गायु का दिमागे
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नेकन फरे, तो पहें उस शुद्ध ही है। अर्थात् मे भागिनोलि प्रालि नही करना पना। ___मन्मान-विषय. दूगर ले भाय यह है पि. ' माय मा. ( जमे कि सन्मान आदि श्रुतगानम) विना . ( मनमान) प्राप्त माधु जिन क्षेत्र में ना हो, क्षेत्र विरोधी गोर भी विच्छेद न हो, इस दृष्टिने नीमने जाना प, गो जागी अनु. ।'
तीस। उल्लेख मिलने वार है। में पहली शिन आचार्य ने 'योनिप्रामृत' आदि द्वारा धो बनाये।' ___ न उल्लेखोमें मुन्य दो यति स्पाट प्रतीत होती है। पहली नोति नि. तक अन्य जिनदासगणी महत्त ममय गमावर मायाम गिना जाता था; और वह यहां तक कि उसका अन्यामी कारणवश दोयमेन पर, नो नी प्राररिपतभागी नहीं समझा जाता था और सन्मनिकन्यामी माधुर. पा. liग्रहण करने के लिए विरोधी राज्यतकमे जाने की थी। दूसरी बात यह है कि fસી સિદસેન માના દાર ડાનન વન્તવનિનવાનગી બર્ન समयमे बहुत प्रसिद्ध और मान्य हो चुकी थी।
प्रस्तुत पूणि जिस भाप्यपर है, वह निकायमाय जिनभद्रगणी क्षमाश्रमका अथवा सिद्धसेन आचार्यका, जो प्रस्तुत सिद्धनेनने भिन्न थे, माना जाता है। उक्त उल्लेखवाली चूणिको मूल भाप्यगाथा सन्मतिको नाम नहीं है, परन्तु दर्शनप्रभावक शास्त्रका नामके विन। उल्लेख है। जिनदासके द्वारा निदिष्ट अश्वसर्जक सिद्धसेन ही सन्मतिके का सिद्धमेन दिवाकर है।
१. यह सिद्धिविनिश्चय अकलककृत नहीं, परन्तु प्राचार्य शिवस्वामित समझना चाहिए । देखो 'सिद्धिविनिश्चय' प्रस्तावना पृ० ५३ ।
२. देखो श्री जिनविजयजी द्वारा सम्पादित 'जीतकल्प' की प्रस्तावना पृ० १० तया निशीथ : एक अध्ययन : निकायोणिको प्रस्तावना पृ० ४० से । ३. सणपभावगाणं सहाणढाए सेवती ज तु । णाणे सुत्तत्याण चरणसण-इत्यिदोसा वा ॥
निशीयभाष्य, गा० ४८६. ४. 'प्रभावकचरित्र' के वृद्धवादी-प्रबन्धके श्लोक १६७-८ में सिद्धसेनके द्वारा किये गये सैन्यसर्जनको सूचना है।