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- स्वयम्भू--ब्रह्मा, महेश्वर शिव और पुरुषोत्तम विष्णु इस पौराणिक त्रिमूतिकी देवके रूपमे जो भावना लोकमानसमें प्रतिष्ठित हो गयी थी और जिस । भावनाको हम सद्धर्मपुण्डरीक' जैसे प्राचीन बौद्ध अन्योम वा विद्वानोके द्वारा 'बुद्ध के साथ जुडी हुई देखते है, उसी भावनाको उन्ही पौराणिक शब्दीमे
लेकर सिद्धसेन और समन्तभद्र' दोनोने कमोवेश परिमाणमे अपने स्तुत्य देव તીર્થને નૈન રહી જોયો તો લૂષિત વરને પ્રયત્ન થયા
है कि तुम जिन ब्रह्मा, विष्णु और महेश्वरको मानते हो वह त्रिमूर्ति तो ___ वास्तवमे जैन तीर्थकर ही है, दूसरे कोई नहीं। इसी प्रकार लोगोमें प्रतिष्ठाप्राप्त
इन्द्र, सूर्य आदि वदिक देवोको, आदिसाख्य अर्थात् कपिल जैसे तत्त्वज्ञ महर्षिको तथा सद्धर्म के प्रचारकके रूप में चारो ओर ख्यातिप्राप्त तथागत सुगतको इन दोनो स्तुतिकारोने अल्पाधिक परिमाणमे अपनाकर और अपने स्तुत्य तीर्थकरमे उनका वास्तविक अर्थ घटाकर लोगोको उसीमे ही उनका साक्षात्कार करनेका सूचन किया है । यही बात भक्तामर ( २३-२६ ) और कल्याणमन्दिर ( १८ ) मे हम देख सकते है। ____उपनिषद् और गीता अभ्यासकी गहरी छाप प्रस्तुत स्तुतिपचकर्म ही नही, दूसरी अनेक वत्तीसियोमें स्पष्ट परिलक्षित होती है, परतु स्वयम्भूस्तोत्रमें वसी नही है।
१. एमेव हं लोकपिता स्वयम्भू चिकित्सक सर्वप्रजान नाथः ।
राद्धर्मपुण्डरीक पृ० ३२६ । अमरकोशम भी बुद्धके नाम के रूप में अद्वयवादी और विनायक शब्द का प्रयोग देखा जाता है । वस्तुतः ये दोनो शद वैदिक सम्प्रदायके है।
२. १.१, २.१; ३.१ । ३. स्वयम्भू० १। ४. तुलना करो १.१, २.१, १९ और स्वयम्भू० ३.५ । ५. बत्तीसी
गीता અથવતમવ્યાહતવિરવસ્ત્રોમાહિ- અનાદિમધ્યાન્નમનન્તવીર્યમનન્તવાદું मध्यान्तमपुण्यपापम् । १.१ शशिसूर्यनेत्रम् । अ० ११.१९ समान्तसक्षिणं निरक्ष स्वयंप्रभं सर्वन्द्रियाणामासं सन्द्रियविजितम् । सर्वगतावमासम् ।
अ० १३.१४ श्वेताश्वतर अ० १३, १६-७ ।