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आगमिक परम्पराको शायद जान-बूझकर ही टाल दिया है। भगवतीसूत्रमे चमरेन्द्र के द्वारा भगवान् महावीरकी शरण लिये जाने का वर्णन है। उसे परवक्तव्य कहना परम्परागत अर्थका विपर्यास नही तो क्या है ? कवि जव स्तुति करता है, तब वह स्तुत्य व्यक्तिका उत्कर्ष बतलाने के लिए परम्परागत चमत्कारो और मान्यताओको भी कवित्वमय शलीसे प्रतिपादित करता हैं।
दूसरी द्वात्रिशिका ५२वे पद्यका जो अर्थविपर्यास किया है, उसे पढ़ करके तो. शायद ही कोई विचारक मुस्तारसाहक्के विचारको भान ले । वे कहते है कि 'स्त्रीचैतस.' अर्यात् स्त्री-जैसा चित्त रखनेवाले पुरुष भी महावीरके मार्गको पाकर भोहको जीत सकते है । यहाँ कोई भी प्रश्न कर सकता है कि जब स्त्री-जसे चित्तवाले पुरु५ भी महावीरके मार्गपर चलकर मोक्ष पा सकते है, तो फिर पुरुष-जसा पराक्रमी चित्त रखनेवाली स्त्रियाँ मोक्ष क्यो नही पा सकती.? दरअसलमें મુસ્તારની મત વિન્ડરીય પરમ્પરાનુસારી સ્ત્રીનાર્તિા મોક્ષવિરોધી मन्तव्य दृढमूल है। इसी के वशीभूत होकर उन्होने स्त्रीचेतस' पदका असम्बद्ध एक दुकृष्ट अर्थ किया है और कहा है कि स्तुतिकारका यह पद्य दिगम्बरी4 पराम्परा के अनुकूल है। कोई भी व्ययविशारद काव्यश उस काल्पनिक, अर्थको एक क्षणभरके लिए भी मान नही सकता। उसका सीधा, तात्विक एव सर्वस्वीकार्य अर्थ तो इतना ही है कि--हे भगवन् । तुम्हारे मार्गपर स्थिर पुरुष स्त्री-परिवारमे रत अर्थात् कामुक हो, तब भी शीघ्र मोहविजयी होते है । स्तुतिकारका तात्पर्य पुरुषकी तरह स्त्रीके लिए भी मोहजय सूचित करनेमे है। जैसे स्त्री-आसक्त पुरुष, वैसे पुरुष-आसक्त स्त्री भी वीतरागमार्ग के आलम्बनसे मोहजित हो सकती है।
प्रयम द्वात्रिशिका ३२वे पद्यमे, द्वितीयके ३०वे पद्य और पचमके २१२२वे पद्यमे 'युगपत्' पद आता है । इसे देखकर मुख्तारजी यहांतक कल्पना करते हैं कि 'युगपत्' ५८ एक समय में उपयोग के अर्थका सूचक है। श्रीमान् मुख्तारजीको ध्यान रखना चाहिए था कि उक्त तीनो स्थलोमें 'युगपत्' पद केवल एक समयमै कालिक अनन्त नाना भावोका प्रकाशन सूचित करने के लिए प्रयुक्त हुआ है। उन स्थलोमें न तो उपयोगक्रमकी बात है, न उपयोगयोगपद्यकी बात है और न उपयोगाभेदका कोई सकेत है। सर्वज्ञत्व माननेवाले स्तुतिकारको जुदे-जुदे शब्दोमे जुदी-जुदी भगीसे कवित्पमय शैलीमें इतना ही कहना है कि सारा सूक्ष्म-स्यूल कालिक जगत् एक ही समयमें सर्वशको अवगत हो जाता है ।
उन्नीसवी वात्रशिका प्रथम पद्य दर्शन, ज्ञान और चारित तीन उपाय