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सन्मति-प्रकरण
एकान्तबाद ही खडा होगा और अनेकान्तदृष्टि लुप्त होगी। इसीलिए इन दोनोका परस्पर सापेक्ष रूपसे ही साधन करना उचित है।
લોર્ડ વાલી પૂર્વપલ્લ તે સમય હેતુ સિદ્ધ ઉગે નાનેવારે બપને સાવ દ્રિ एकान्तरूपसे योजना करे, तो प्रतिवादी उसकी न्यूनताको देखकर उसके पक्षको तोड डालता है और इसका परिणाम यह आता है कि वह हार जाता है। वस्तुस्थिति कुछ ऐसी ही है। अब यदि उसी पूर्वपक्षीने पहले ही से अपने पक्षमे न्यूनता न रहे इस वातको ध्यानमे रखकर अनेकान्तदृष्टि से साव्यको योजना को होती, तो यह स्पष्ट है कि चाहे जसे प्रवल प्रतिपक्षीसे भी उसे पराजित न होना पड़ता। अत वाद में उतरनेवाला अनेकान्तदृष्टिसे ही साध्यको उपन्यास करे, जिससे उसे कभी हारना न पड़े।
एकान्तपने के कारण जो नितान्त मिथ्या हो उसकी तो बात ही जाने दे, परन्तु सचमुच सत्य होनेपर भी यदि उसे अनिश्चित एवं सदिग्ध रूपसे वादगोष्ठीने खा जाय, तो वह वादी व्यवहारकुशल एव शास्त्रनिपुण सभी सम्योकी दृष्टिस गिर जाता। है। इससे मात्र अनेकान्तदृष्टि रखना ही पर्याप्त नहीं है, परतु उस दृष्टिके साथ असदिग्धवादिता भी वादगोष्ठी में आवश्यक है। तत्त्वप्ररूपणाकी योग्य रीतिका कथन
दवं खित्तं कालं भावं पज्जाय-देस-संजोगे।
भेदं च पडुच्च समा भावाणं ५०णवणपज्जा ॥ ६०॥ अर्थ--पदार्थोकी प्ररूपणाका मार्ग द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव, पर्याय, देश, सयोग और भेदका अवलम्वन लेनेपर ही योग्य होता है।
विवचन पदार्थोकी अनेकान्तदृष्टिप्रधान प्ररूपणा योग्य रूपसे करनी हो तो जिन-जिन बातोकी ओर ध्यान अवश्य ही रखना चाहिए उन बातोका यहाँ निर्देश है। ऐसी वात आ० हैं और वे इस प्रकार है : १ द्रव्य पदार्थको मूल जाति, २ क्षेत्र स्थितिक्षेत्र, ३ काल समय, ४. भाव पदार्थगत , मलशक्ति, ५ पर्याय शक्तिके आविर्भूत होनेवाले कार्य, ६ देश व्यावहारिक स्थान, ७ सयोग आसपासको परिस्थिति, और ८ भेद प्रकार।
વાળાર્ય ચઢિ ધ્યાન, ત્યામ સાદ્રિ સી વારિત્રારા વિારા નિત્પળ करना हो अथवा आत्मतत्वका स्वरूप बताना हो, तो कमसे कम परकी आ6 वातोपर वरावर लक्ष्य रखनसे ही वह विशद एव अभ्रान्त रूपसे हो सकेगा।