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( १ ) १ परलोक है ? २. परलोक नहीं है ?
३ परलोक है और नही है ?
४ परलोक है ऐसा नही, नही है ऐसा नही ?
(२) १ ओपपातिक है
२ औपपातिक नही है ?
३ औपपातिक है और नही है ?
४. ओपपातिक न है, न नही हैं ?
( ३ ) १ सुकृतं दुष्कृत कर्मका फल है ?
२ सुकृत दुष्कृत कर्मका फल नही है ? ३ मुकृत दुष्कृत कर्मका फल है और नही है ४ मुकृत दुष्कृत कर्मका फल न है, न नही है
?
( ४ ) १ मरणानन्तर तथागत है
( १ ) १ आत्मारम्भ
२ परारम्भ
२ मरणानन्तर तथागत नही है
३ मरणानन्तर तथागत है और नही है।
४ मरणानन्तर तथागत न है और न नही है ?
जैन आगमोमे भी ऐसे कई पदार्थोका वर्णन मिलता है, जिनमे विधिनिषेव उभय और अनुभयके आधारपर चार विकल्प किये गये है । यथा
३ तदुभयारम्भ ४ अनारम्भ
(२) १. गुरु
२ लघु
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?
३ गुरु-लघु
४
अगुरुलघु
( ३ ) १, सत्य
२ मृपा
३
૪. અસત્યનુષા
सत्य- मृषा
- भगवती १११७
सान
माण्डूक्य
181 "
स्पाती है अर्थात् ही विपक्षको कोई विहोकर एक
२ एक ही मत
- भग्रवर्तसे यानपर रहकर वस्तु
--भगवती १९७४
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