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सन्मति-प्रकरण
___अनेकान्तदृष्टि के अनुसार घटस्५ कार्य पृथ्वीरू५ कारणसे अभिन्न और भिन्न फलित होता है। अभिन्न इसलिए कि मिट्टीमें घडा पैदा करने की शक्ति है और घडा बनता है तब भी वह मिट्टीसे रहित नहीं होता, भिन्न इसलिए कि उत्पत्तिके पहले मिट्टी ही थी और धडा दिखाई नही पडता था और इसीलिए पडेसे होनेवाले कार्य भी नही होते थे। कारण-विषयक वादोका' एकान्तके कारण मिथ्यात्व और अनेकान्तक कारण सम्यक्त्व
कालो सहाक णियई पुवकयं पुरिस कारणेगंता ।
मिच्छत्तं ते चेवा (व) समासो होंति सम्मत्तं ॥५३॥ अर्थ काल, स्वभाव, नियति, पूर्वकृत (अदृष्ट) और पुरुषरूप कारण-विषयक एकान्तवाद मिथ्यात्व अर्थात् अयथार्य है, और वे ही वाद समाससे (परस्पर सापेक्षरूपसे) मिलने पर सम्यक्त्व अर्थात्... यथार्थ है।
विवेचन कार्यकी उत्पत्ति कारणसे होती है। कारणके वारेमे भी अनेक मत है। उनमेसे यहां पांच कारणवादोका उल्लेख किया गया है।
१ कोई कालवादी है, जो केवल कालको ही कारण मानकर उसकी पुष्टिम कहते है कि भिन्न-भिन्न फल, वर्षा, ०ण्डी, गरमी आदि सब ऋतुभेदके कारण होते है, और ऋतुभेद अर्थात् कालभेद।
२ कोई स्वभाववादी है, जो केवल स्वभावको ही कार्यमात्रका कारण मानकर उसके समर्थनमें कहते है कि पशुओम स्थलगामिता, पक्षियोमे गगनगामिता, फलकी कोमलता और काटेकी तीक्ष्णता--यह सब प्रयत्न या दूसरे किसी कारणसे नही, अपितु वस्तुगत स्वभावसे ही सिद्ध है।
३ कोई नियतिवादी है। वे नियति के अतिरिक्त दूसरे किसीको कारण न मानकर अपने पक्षकी पुष्टि में कहते है कि जो मिलने वाला होता है वह अच्छा याबुरा मिलता ही है। न होने का नहीं होता और जोहानेका है उसे कोई मिटा नहीं सकता। मत यह सब नियति के कारण होता है। इसमे काल, स्वभाव या दूसरे किसी कारणको स्थान नही है।
_१ ये सभी कारणवाद श्वेताश्वतर उपनिपद में हैं ( अ १)। इसकी अधिक तुलनाके लिए देखो सन्मति टीका पृ ७१०, टिप्पणी ५।