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(२) वत्तीसियोके वाचनपरसे उसके प्रणेताके बारेमे जो नौ बाते स्फुट होती है, वे इस प्रकार है .
( क ) नाम बत्तीसियोको रचनाके समय कताका सिद्धसेन नाम प्रसिद्ध था, क्योकि ५वी बत्तीसीके अतमे इस नामका उल्लेख है।
(ख) जाति श्रुति एव उपनिषदोका मौलिक अभ्यास तथा संस्कृत ) भाषापरका प्रभुत्व पूर्वाश्रममे उनके ब्राह्मणत्वकी सूचना देता है।
(ग) सम्प्रदाय वह जन सम्प्रदायके तो थे ही, परन्तु उसमे भी श्वेतावर थे, दिगम्बर नही, क्योकि दिगम्बर परम्परामें अमान्य और श्वेताम्बर आगमोमे निर्विवाद रूपसे मान्य ऐसी महावीर गृहस्थाश्रम तथा चमरेन्द्र के शरणागमनको वातका वे उल्लेख करते है।
(घ) अन्यास और पाण्डित्य तत्कालीन सभी वैदिक दर्शनोके, महायान सम्प्रदायकी सभी शाखाओके एव आजीवक दर्शनके गहरे और मौलिक अभ्यासके अतिरिक्त जन दर्शनका उन्हें तलस्पर्शी अभ्यास था, क्योकि वे सभी વનો મન્તવ્યો સંક્ષેપમે તુ સ્પષ્ટ રૂપમેં પ્રતિપાત પદ્ધતિને છોટે-છો કે प्रकरणोमे वर्णन करते हैं और ऐसा करके सभी विद्वानों के लिए सब दर्शनोका अभ्यास सुलभ करनेका लघु पथ तैयार करते है।
(ड) स्वभाव उनका स्वभाव सदा प्रसन्न और उपहासशील होगा, क्योकि वे बहुत बार एक सामान्य वस्तुका इस ढगसे वर्णन करते है कि उसे सुनते ही चाहे जैसा गभीर आदमी भी एक बार तो खिलखिलाकर हँसे विना शायद ही रह सके।
(च) दृष्टि उनकी दृष्टि समालोचनाप्रधान थी, अत. तर्क द्वारा किसी भी वस्तुका निर्भय परीक्षण करनेपर भी वे साम्प्रदायिकतासे मुक्त नहीं थे, क्योकि उनकी दृष्टि पर-सम्प्रदायपर आक्रमण करते समय तर्कको तीन अवलम्बन लेती है, जबकि स्वसम्प्रदायकी तकवलसे सिद्ध न हो सकनेवाली बातोके विषयमे मात्र श्रद्धाका आधार लेकर उसपरसे ताकिक परवादियोके सामने तवलसे ही सिद्धान्त स्थापित करते है। मतलव कि स्व-सम्प्रदाय और पर-सम्प्रदायको वातोकी परीक्षा) તે સમય ની તવૃદ્ધિની તુાં નસી નહીં હતી !
(छ) राजा, सभा और वादगोष्ठियोका परिचय उन्हें किसी एक राजाका खास परिचय था, क्योकि वह किसी राजाको उद्दिष्ट करके ही ११वी गुण
१. देखो बत्तीसी २.३; ५.६ ।। २. उदाहरणार्थ बत्तीसी ६.१, ८.१ तथा १२.१ । ३. उदाहरणार्य बत्तीसी १.१४ ।