________________
(१) बत्तीसियों को पाचन एव मनन करने पर उनकी रचनायो युगक विषयमें मनपर ऐमी सामान्य थाप ५७ती है कि जिस समय महत भापाको त्यान और विकास खूब हुआ होगा, जिस समय दा-निक विचार संस्कृत भाषामे करना और उन्हें पचतकमें गुफित करनेको प्रवृत्ति जोर-शोर चलती होगी, जिम समय। प्रत्येक सम्प्रदाय के विद्वान् अपने-अपने सम्प्रदायको स्थापना, पुष्टि और प्रचारक
हमारे समक्ष इस समय जनधर्मप्रसारक सभा, भावनगरको ओरसे प्रकाशित मुद्रित श्रावृत्ति है। उसमें जिस क्रमसे दत्तीसियाँ है उसी क्रमसे उनकी रचना हुई होगी, ऐसा नहीं लगता। पीसे लेखकाने अथवा पा०कोंने वह कम निश्चित किया होगा, ऐसा प्रतीत होता है । इन पत्तीसियोमसे पुछके अन्तम नाम छपा हुश्रा है, जब कि कुछके अंतमें नहीं है । इसपरसे सम्भव तो ऐसा लगता है कि पीसे किसीने
वे नाम जोड़ दिये है। ये फहो तो जाती है सभी पत्तीसियां, पर उनमें कहीं-कहीं ___ कमोवेश भी है । बत्तीस-वत्तीसके हिसाबसे वाईस पत्तीसियोंके कुल ७०४ ।।
५च होने चाहिए, परन्तु उपलक्ष्य मुद्रित पत्तासियोमें उनकी कुल संख्या ६९५ है । २१वीं बत्तीसीम एक पद्य अधिक है अर्थात् उसमें कुल तीस पच है, जबकि ८, ११, १५ और १९ इन चार तीसको अपेक्षा कम ५५ है। पद्योकी यह कमोवेश संख्या बत्तीसियोके रचना-समय ही होगी, या पीछेसे कमोवेशी हुई होगी, या फिर मुद्रणको आधारभूत प्रतियोकी अपूर्णता के कारण मुद्रित प्रावृत्तिम श्रायी होगी, यह इस समय कहना कठिन है। फिर भी ऐमा प्रतीत होता है कि कमीपेशीको यह गोलमाल पीछेसे ही किसी कारणवश हुई होगी।
ये सभी वत्तीसियां सिद्धतेनके जन दीक्षा अंगीकार करने के पश्चात् ही लिखी गयी हो, ऐसा नहीं कहा जा सकता । सम्भव है कि उन्होने इनमें से कुछ पत्तीसियाँ पूर्वाश्रममें भी रची हो और बादमें उन्होने अथवा उनके अनुगामी शिष्योने उनकी इन सभी कृतियोका सग्रह किया हो और वह सुरक्षित भी रहा हो। __दार्शनिक विभाग जैमिनीय जैसे प्रसिद्ध दर्शनको पत्तीती नहीं दिखायी । पड़ती। इससे ऐसा सूचित होता है कि शायद लुप्त वतीसियोमें वह भी रही हो। ____ मुद्रित पत्तासियाँ अत्यन्त अशुद्ध और सन्दिग्ध है । कई स्थानोमें तो संकड़ो वार प्रयत्न करने पर भी अर्थ समझमें नहीं आता और अनेक स्थानोपर वह सन्दिग्ध रहा है। अनेक पुरानी और लिखित प्रतियोका संग्रह करके और पा०तरोको मिलाकर यदि वे पढ़ी जाय, तो बहुत अशम भ्रम और सन्देह दूर हो सकता है। इस समय तो बत्तीसियोके बारेमें हमारा सारा कथन इस शुद्ध, अशुद्ध