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यह भी एक प्रश्न है। दिगम्वरोका युगपदाद कुन्दकुन्दके अन्यसे ही सिद्ध है। मल्लवादीको कोई भी ग्रन्थ इस समय अविकल उपलब्ध नहीं है, अत इसका अर्थ इतना ही लगता है कि अभयदेवके सामने युगपद्वादको व्यवस्थित रूपसे चर्चा करने वाला मल्लवादीरचित कोई स्वतत्र प्रकरण अथवा टीकात्मक ग्रन्थ होगा।
सिंहगणी क्षमाश्रमण, हरिभद्र और गन्धहरती सिंहाणी क्षमाश्रमण सिंहगणी क्षमाश्रमणने नयचक्रमे अनेक स्थानोपर सिद्धसेनके नाम के साथ और नामके बिना भी सन्मतिकी अनेक गाथाएँ उद्धृत की हैं
और उस ग्रन्थके अन्तमे ऐसा सूचित किया है कि सन्मति एव नयावतार जसे नयविषयक प्रौढ अन्य होनेपर भी वे अत्यन्त दुर्गम तथा विस्तृत होने से सक्षेपरुचि पा०कोके लिए यह नयचक्र लिखा गया है। अन्यकारका यह एक ही उल्लेख स्वयं उनके ऊपर सिद्धसेनका कितना अधिक प्रभाव था, यह सूचित करने के लिए पर्याप्त है। , हरिभद्र हरिभद्रके ऊपर सिद्धसेनको प्रभाव स्पष्ट है। उन्होने सिद्धनका सन्मतिके द्वारा एक लवप्रतिष्ठके रूप में वर्णन तो किया ही है, परन्तु इसके તિરિત કોને અનેકાન્તનયપતાકા, શાસ્ત્રવાર્તાલમુખ, વનસમ્પય, ઘર્મસળી વિ અને અન્યો વનામે સિદ્ધસેની સન્મતિ, ન્યાયાવતાર ર दूसरी बत्तीसी आदि कृतियोमसे बहुमूल्य प्रेरणा तथा उपयोगी विषय लिये है। यह वात इन दोनो आचार्योंकी कृतियोकी तुलना करने से स्पष्ट ज्ञात हो सकती है। षड्दर्शनसमुपय तो प्राय सिद्धसेनकी दार्शनिक बत्तीसियोके अवलोकनकी प्रेरणाको ही फल है।
गन्धहस्ती--वहस्तीने अपनी तत्त्वार्थभाष्यवृत्तिम क्रमवादका पक्ष लेकर अभेदवादीके सामने जो कठोर आक्रमण किया है, वह सिद्धसेन दिवाकरको लक्ष्यमे रखकर ही किया हो, ऐसा जान पडता है, फिर भी ऐसा लगता है कि उनके ऊपर
१. शान-दर्शनोपयोगके क्रम आदिकी यह चर्चा 'शानबिन्दु'को प्रस्तावना ( पृ० ५४ ) में भी की गयी है।
२. देखो सन्मति, परिशिष्ट दूसरा सिंह क्षमाश्रमण।'
३. अनेकान्तजयपताका चर्चित विषयका मूल समिति के तीसरे काण्डमें है। समिति के पहले काण्डको गा० ४३-४ का अनुवाद शास्त्रवातासमुपयको ५०५ एव ५०६ कारिकाओमें है । षड्दर्शनसमुच्चयके मूलमें चर्चित विषय रूपान्तरसे सिद्धसेनको दार्शनिक बत्तीसियों में है।
४. 'यद्यपि केचित् पण्डितमन्या.' इत्यादि अ० १, ३१, पृ० १११ ।