Book Title: Sandesha Rasaka
Author(s): Abdul Rahman, Jinvijay, H C Bhayani
Publisher: Bharatiya Vidya Bhavan

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Page 184
________________ सन्देश रासक एय वयण' आयन्नवि सिंधुब्भववयणि, ससिवि सासु दीहुन्हउ' सलिलब्भवनयणि । तोडि करंगुलि करुण सगग्गिर गिरफ्सर, पद्म ६३-६७ ] जालंधर व समीरिण मुंध थरहरिय' चिरु ॥ ६६ ॥ रुइवि खणडु फुसवि नयण पुण वज्जरिउ", खंभाइतह" णामि" पहिय तणु जज्जरिउ" । 13 15 16 तह मह" अच्छइ णाहु" विरहउल्हावयरु", अहिय कालु गम्मियउ ण आयउ हियरु ॥ ६७ ॥ पर मोडवि" निमिसिद्ध" पहिय जइ " दय करहि, 21 22 कहउं" किंपि संदेसर पिय तुच्छक्खरहि" । 2 A आयन्निवि । 3A ससिउसासु । A मुद्ध । 7A °हरीअ । 8 B रुयवि । 1 C वयणु । 5 C कसमी° । 6 10 C वज्जरियउ । 11 B इत्तिहिं । 14 C जज्जरियउ | 15 A महु । 16 B निमिसद्धु । 20 जे । 21 A B कहउ | 4 B दीउन्हउ; C दीव उन्हउ । 9A. खणद्धउ; B खणडु वि । 13 B पहितणु । B मोडिवि । 19 B Jain Education International 12 C नामु; B नामि । C नाहु | 17 बरु । 18 22 A B तुच्छखरिहि । [ टिप्पनकरूपा व्याख्या ] [ ६६ ] सिन्धूद्भववदना - चन्द्रमुखी, सलिलोद्भवनयना - कमलाक्षी, एतानि वचनान्याकर्ण्य, दीर्घोच्छ्रासं निःश्वस्य, कराङ्गुलीत्रोटय (यित्वा सगद्गगीःप्रसरा, वाताहता जालन्धरीवत् - कदलीवत्, चिरं मुग्धा थरहरिता - कम्पिता ॥ ६६ ॥ [ ६७ ] क्षणार्द्ध रुदित्वा, नेत्रे मार्जय (य) त्वा, तथा पुनरुक्तम्-हे पथिक ! स्तम्भतीर्थनाम्ना मम शरीरं जर्जरितम् । तत्र विरहस्फेटको मम भर्त्ता वर्त्तते, तं feat मयाऽधिकः कालो निर्गमितः । परं स निर्दयो न समागतः ॥ ६७ ॥ मोटयसि, तदा किञ्चित् [ ६८ ] हे पथिक ! यदि दयां कृत्वा क्षणार्द्ध पदं →→→→→ [ अवचूरिका ] [ ६६ ] सिन्धूद्भववदना - चन्द्रमुखी, सलिलोद्भवनयना - कमलाक्षी, एतानि वचनान्याकर्ण्य दीर्घोष्णं श्वासं निःश्वस्य कराङ्गुलीर्मर्द्दयित्वा सगद्गद्गीःप्रसरा वाताहता जालन्धरी = कदलीवत् विरं मुग्धा थरहरिता - कम्पिता ॥ 会 [ ६७ ] क्षणार्धं रुदित्वा, नेत्रे मार्जयित्वा तया पुनरुक्तम् - हे पथिक ! स्तम्भतीर्थनाम्ना मम शरीरं जर्जरितम् । तत्र विरहफेटको मम भर्त्ता वर्त्तते । तं विना मयाऽधिककालो निर्गमितः, परं स निर्दयो न समागतः ॥ [ ६८ ] हे पथिक ! यदि दयां कृत्वा क्षणार्थं पदं मोटयसि - उपविशसि, तदा किंचित् संदे. For Private & Personal Use Only 茶茶 www.jainelibrary.org

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